Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 806
________________ ६१० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ मोनियर मोनियर विलिअम्स संस्कृत-इंग्लिश ५००, ५०२, ५०६, ५०८, ५१२, ५१५, डिक्शनरी २५४, ५०२ ५१८,५५६,५५७,५५८,५६०,५६३मोहनलाल मेहता, डॉ० ५१५ ५६५, ५६९-५७२, ५७४-५७७,५८१मोहेन-जो-दड़ो १८, ३९४, ४००, ४०३, ५८६ ४०५ यापनीय और उनका साहित्य (श्रीमती डॉ० मोहेन-जो-दड़ो की जिनप्रतिमाएँ ३९४ कुसुम पटोरिया) ५८७ मोहेन-जो-दड़ो : जैन परम्परा और प्रमाण यापनीयग्रन्थ ५८८, ५८९ ___ (एलाचार्य मुनि विद्यानन्द) ३९५ यापनीयग्रन्थ के लक्षण ५८८-५९० मौर्टिमर ह्वीलर (सर) ४०० यापनीयतन्त्र (यापनीय सम्प्रदाय का प्रमुख य ग्रन्थ) ४८, ४८५, ४८७, ५७५ यक्षा, यक्षदिन्ना (स्थूलभद्र की बहिनें) ४२१ यापनीय-नन्दिसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण .५६३, यजुर्वेद ४०१ ५६५ यतिवृषभ (आचार्य) १३२ यापनीय-यतिग्रामाग्रणी (उपाधि) ५६० यथाजातरूपधर १३९, १४०, २७७ यापनीयसंघ की विशेषताएँ (लक्षण) ४८५यशोभद्र (दि० मुनि) ६५ ४८८ यशोभद्र (श्वे० श्रुतकेवली) ४४७ यापनीयसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण ५६४-५६६ यशोभद्र श्रेष्ठी ४६० यापनीयसंघ सचेलाचेलमार्गी यापजवक, यापजावक (यापज्ञापक) ५१७ - स्त्रीमुक्ति, परतीर्थिक-सग्रन्थ-मुक्ति ५१९, ५२१, ५२२, ५५४ मान्य ४८६, ५७२ Yapan-Saigha (यापनीयसंघ) ५१७ - स्थविरकल्पिक-मुक्ति मान्य ४८७ यापनीय (सुखमय स्थिति-बौद्धसाहित्य) यापनीय साहित्य ५७४ ५०१ यापनीय (स्वशक्त्यनुरूप प्रवृत्ति-श्वे० __ यापुजवक ५२४ साहित्य) ५०२ यास्क (महर्षि) २५० यापनीय (व्युत्पत्ति) ५०२ युग (हिन्दूपुराणानुसार-सत् या कृत युग, यापनीय (मत, मुनि, आचार्य, संघ, सम्प्रदाय, त्रेता, द्वापर, कलि युग, इनका कालपरम्परा) ४,५, ११, १८,४९, ६३,७६, प्रमाण) २५६, २५७ ७७, ७९, १०७, १०९, ११४, ११६, यूअनच्चांग (यात्री) ४०१ १४१, ३५२, ३५३, ३९०, ४१६, ४१७, यू० पी० शाह, डॉ० ४०४, ४०९, ४१५ ४२८, ४२९, ४३२-४३४, ४४५, ४७०- योगमुद्रा ३९४, ३९५ ४७२, ४८५, ४८७-४८९, ४९२, ४९३, योगेश्वर ऋषभ २८१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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