Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 808
________________ ६१२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ वज्रवृषभनाराचसंहननधारी १०० वज्रसूची उपनिषद् २५१ वज्रसूरि (आचार्य) १३३ वटगोहाली (स्थान) ६५, १४२ वट्टकेर (आचार्य) १३२ वड्डाराधने (कन्नड़ ग्रन्थ) ५१० वप्रवाद (राजा) ४५६ वरांगचरित (जटासिंहनन्दी ) १० वराहमिहिर (ज्योतिर्विद ) १९ वराहमिहि-बृहत्संहिता २७१ वर्धमानसागर (आचार्य) १३३ वलभी ( वलभी) नगर ४५७, ४५८, ४६०, ४६३ वल्लभी ( वलभी, सौराष्ट्र) वाचना १२, ५७६ वसुदेव (कृष्ण के पिता ) ३७४ वसुनन्दी - श्रावकाचार २८८ वसुन्तवाटकग्राम ३८९ वस्त्रलब्धि (ऋद्धि) ६, ७, ९९, १००, १०३ वस्त्रलब्धिमान् जिनकल्पिक (श्वे० साधु) १७, ९९ वाणारसीविलास ३८७ कर') विद्यानन्द मुनि, एलाचार्य, आचार्य (वर्तमान) १३३, ३७६, ३९५ विद्यासागर आचार्य (मूकमाटी-म‍ कार) १३३ विद्वज्जनबोधक ३८७ विधिमार्गप्रपा (श्वे० साध्वी सौम्यगुणाश्री) २६ विनयपिटक ३१८ विमलसागर आचार्य १३२ विमलसूरि (श्वे० आचार्य) २९७ विमुक्तवसन (दिगम्बरमुनि) २९३ विवादपूर्व जिनप्रतिमारूप ( न नग्न, न पल्लवयुक्त) ३६४, ३६५, ३६६ विशाखाचार्य (दशपूर्वियों में प्रथम - चन्द्रगुप्त मौर्य) १३२, ४५३, ४५४ वातरशन मुनि १८, २४०, २४३, २४९, २५०, विशाखाचार्य (चन्द्रगुप्त से भिन्न ) ४५९, २७३ वातवसन श्रमण २५० वात्सीपुत्रीय भिक्षु (बौद्ध) ४७५ वादिदेवसूरि ३१२ वायुपुराण २७१ वारिषेणाचार्यसंघ (कूर्च्चक सम्प्रदाय) ३९० वालभी पट्टावली ९७ वासुदेवशरण अग्रवाल (डॉ०) ३८०, ४०८, ४१० विक्रमसंवत् ५१२, ५१३ विजयानन्द सूरीश्वर 'आत्माराम' (श्वे० आचार्य) २५७, ३६८ Jain Education International विजहना ३३९ विद्याधर जोहरापुरकर (देखिये 'जोहरापुर - -महाकाव्य ४६० विशालमति (आर्यिका ) १३७ विशेषावश्यकभाष्य १७, १८, २०, २२, २३, ४०, ९५, १२६, १५६, १७५, २०३२०७, २०९, २२६, २२८, ३६८, ४४७, ४४८ - हेमचन्द्रवृत्ति १७, १८, २३ - २५, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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