Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 809
________________ ३६-३९, ४४, ४६, ४७, ५०-५२, ६०, ८६, ९०-९२, ९५, ९९, ११८ - १२१, १२५-१२७, १६९, १७५ - १७७, २०१ - २०४, २०६, २०७, २०९, २१७, २२४, २३०, २३३, २५३ विशुद्धानन्द पाठक (भारतीय इतिहास और संस्कृति) ३९७ विश्वम्भरसहाय प्रेमी (हिमालय में भारतीय संस्कृति) ३९७ विष्णु ( श्रुतकेवली ) १३२, ४४७ विष्णुपुराण २६२, २६९, २८४ विष्णुसहस्रनाम २५१ विसाखावत्थुकथा, विशाखा ३१०, ३४०, ३४१, ३५२ वीरनिर्वाण संवत् ८०, ८१ वीरसागर आचार्य १३२ वृद्धश्रावक (एलक - क्षुल्लक) २८७ वृषभ: २४०, २४५, २४६, ३९८, ४०१ वृहस्पतिमित्र ( पुष्यमित्र) राजा ४०५, ४०६ वेणूर - बाहुबलिप्रतिमा ४१२ वेदव्यास २५७ वेन (राजा) २८३ - २८७ वैदिकदर्शन २४० वैदिकधारा-श्रमणधारा ३९६ वैदिक माइथॉलॉजी (मैक्डॉनल) २४७, ४०३ वैदिक साहित्य २३९ वैदिक साहित्य और इतिहास ( बलदेव उपाध्याय) २५० - २५२ वैराग्यशतक (भर्तृहरि) २८३ वैराग्यसंन्यासी २७८ वैशाली ३३४, ३३५ Jain Education International शब्दविशेष- सूची / ६१३ व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र ) ९३, ४१७ व्रात्य २४८, २४९ व्रात्यस्तोमविधि २४८ श शय्यम्भव ( श्वे. श्रुतकेवली ) १७२, ४४७, ४५१ शाकटायन (पाल्यकीर्ति) (देखिये, 'पाल्यकीर्ति') शाकटायन सूत्र (व्याकरण) ५७५ शान्तिसागर (आचार्य) १३२ शान्त्याचार्य ११५, ४५७-४५९ शार्पोटियर (डॉ०) ४६८ शिक्य (झोली) २७७ शिखिपत्रमार्जनी ( मयूरपिच्छी) २८५ शिवकुमारमहाराज (मुनि) ९ शिवभूति (बोटिक) ३, ४, २०, ३२, ३५४५, ५७, ७३, ७४, ११७, ११८, ४७१, ४७७, ४८८, ५०३ शिवमहापुराण २९७ - २९९ शिवमार (द्वितीय) ९ शिवमृगेशवर्मा (कदम्बवंशीय राजा ) ९ शिवसागर (आचार्य) १३२ शिवस्कन्द वर्मा (पल्लवराज ) ९ शिवार्य ( भगवती - आराधनाकार) १३२ शिश्नदेव १८, २४७, २४९, ४०२, ४०३ शीतादिपरीषह ( जय ) ९९, १२४, १२५ शीलांकाचार्य (श्वे० ) १०० शुक्लध्यानपरायण ( जाबालोपनिषद्) २७७ शुभप्रभामण्डल (तीर्थंकरों का - श्वे०) १०३, ३५९, ३६१, ३८७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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