Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 804
________________ ६०८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ वाचना, ९ - १० पूर्वों की वाचना पाटलिपुत्र में), ४४७ (श्वे० परम्परा में भी श्रुतकेवली के रूप में मान्य), ४५१, ४५२, ४५९, ४६५, ४६७-४७१, ४७४, ४७७, ५७०, ५७३ भद्राचार्य (दिगम्बर जैनमुनि) ४५३ - ४५५ भद्रपुर ३७४, ३७६ भरत (ऋषभपुत्र, चक्रवर्ती) २६२, २६४ भरतसिंह उपाध्याय ३१३ भर्तृहरि-वैराग्यशतक २८३ भागवत पुराण २४१, २४२, २४४, २४९, २५१, २६३, २६५, २७३-२७७, २८१ भाण्डिक चेष्टा (अश्लील चेष्टा ) ९०, १८९ भाद्रपददेश ४५३ १५७ भावनाद्वात्रिंशतिका (आ० अमितगति ) २२० भावसंग्रह (प्राकृत - देवसेन) ४५७ भावसंग्रह ( वामदेव) ८५ भास (नाटककार) २६० भिक्खुराय (खारवेल की उपाधि) ४२४, ५२९ भिक्षुकोपनिषद् २७७ भिल्लकसंघ ५१३ म एम० ए० ढाकी (प्रोफेसर ) ९ एम० डी० वसन्तराज ( डॉ०) १३६ एम० एल० जैन ( जस्टिस ) १६६ एम० एल० शर्मा डॉ० (भारत में संस्कृति और धर्म) ३९७ भानुचन्द्र (श्वे० आचार्य) १३७ भायाणी एच० सी० डॉ० (देखिये, 'ह' वर्ण) मक्खलि गोसाल ( मक्खलिपुत्र गोशाल, भारत, भारतवर्ष २६५, २९० अहेतुवादी) ३०५ - ३०७, ३१४-३१६, ३२२, ३२६, ३२७, ३३३ भारतीय इतिहास : एक दृष्टि ३७८ भारतीय पुरालेखों का अध्ययन (डॉ० शिवरूप सहाय) ३३७ मङ्गलदेव शास्त्री (डॉ०) ३९६ मज्झिमनिकायपाळि २४२, ३१०, ३२६, ३२८, भारतीय संस्कृति का विकास (वैदिक धारा - डॉ० मंगलदेव शास्त्री) ३९६ भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान : (डॉ० हीरालाल जैन) २४१, २४७, ४०४, ४११, ४१२, ४१५, ५८५ भावना ( आचारांग का २४वाँ अध्ययन ) ३३२, ३३३, ४४९ मत्स्यपुराण २६१, २६२ मथुरा ४८० मथुरा का कुषाणकालीन शिल्प ३७३ मथुरा की नैगमेश - मूर्तियाँ ३७३ मथुरा की प्राचीन जिनप्रतिमाएँ ३६९, ३७१, Jain Education International भीषण दुष्काल (श्वे० ) ४२१ भीषण दुष्काल में कण्ठस्थ पाठों का विस्मरण ४२१ भीषण दुष्काल में शास्त्रों का अनभ्यास ४२१ भूतबलि ६५, १३२, ४११ मथुरा - शिलालेख १४८ मनु (स्वायम्भुव चाक्षुष, वैवस्वत) २८३, २८४ मनुस्मृति २४८, २६५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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