Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 802
________________ ६०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ प्रतिमाविवाद ( दिगम्बर - श्वे०) ३६४-३६६ प्रतिलेखन, प्रतिलेखना ( पिच्छी) ४८२ प्रथमोत्कृष्ट श्रावक, द्वितीयोत्कृष्ट श्रावक ( क्षुल्लक, एलक) २८९ प्रबोधचन्द्रोदय (नाटक) २५४, २९३ प्रभव स्वामी (श्वे० श्रुतकेवली) १७२, ४४७, ४५१ प्रमाणसागर (मुनि) ३९६-३९८ प्रवचनखिंसा ३६० प्रवचनपरीक्षा (स्वोपज्ञवृत्तिसहित) ६, ३६, ४२, ५३, ५४, ८६ - ९३, ९५, ९९, १०३, १२६, १२७, १८९, २०१, २०२, २१२, २१७, २२८, २३०, २३४, २५३, २५४, ३११, ३६४-३६६, ३८७, ३९३, ४९६ प्रवचनसार ९, ३७, १४०, २२० तात्पर्यवृत्ति (आचार्य जयसेन) १९७ प्रस्तावना (अँगरेजी — डॉ० ए० एन० उपाध्ये) ६२ प्रवचनोड्डाह ३६० प्रशमरतिप्रकरण ( उमास्वाति, श्वे०) २३१ प्रश्नोपनिषद् २४९ शांकरभाष्य २४९ प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास (डॉ॰ नेमिचन्द्र शास्त्री) ५८२ - ५८४ - प्राचीन भारतीय संस्कृति (बी० एन० लूनिया) २५२ प्राणनाथ विद्यालंकार (प्रो०) ३९६ प्रातिहार्यसूत्रकथा (दिव्यावदान ) ३३८ प्रियव्रत २६३ - २६५ प्रिंस आफ वेल्स संग्रहालय मुंबई ४१० फ Jain Education International एफ० बी० कावेल (Cowell) ३३८ फल्गुमित्र, फग्गुमित्त (श्वेताम्बराचार्य) ५८० फूहरर ( Dr. Fuhrer) ३७३, ३७५ फ्लीट (डॉ०) ७२ ब बंगाल ४७४ बनारसीदास ( पं० कवि) १३७ बम्मवुड (आर्यिका रात्रिमति - कन्ति की शिष्या) ५०६ बर्हिपिच्छधर २६२, २६७ बलदेव उपाध्याय (डॉ०) २५०, २५१, २६०, बहूदक संन्यासी २७९ बादामी की बाहुबली-प्रतिमा ४१२ बाहुबलि की प्रतिमाएँ ४१२ प्राकृत भाषाओं का व्याकरण (डॉ० रिचार्ड पिशल) २५४ बी० एच० हॉजसन ( Hodgson) ३३८, बी० एन० लूनिया २५२ बीभत्सदर्शन (दिगम्बरमुनि) २६९, २७० बुट्टराज, बुट्टराय (राजा) ५२८ प्राकृत विद्या (पत्रिका, जनवरी-मार्च १९९६) ५८२ प्राकृत साहित्य का इतिहास (डॉ० जगदीश- बुद्धघोष ( धम्मपद - अट्ठकथाकार ) ३४० जोई (संस्कृत के ज्ञाता हकीम) २५८ चन्द्र जैन) २०, ३६० २७१ बलिस्सह (श्वे० आचार्य) ९७ बल्लालदेव ५०६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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