Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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६०४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ निर्ग्रन्थ (नग्न) ७, १८, ६५, १०७, ११५, नोणमंगल-ताम्रपत्रलेख ८, ३८९, ४३४, ५५५
१३८-१४०, १४३, १४४, २६१, २७१, न्यायकुसुमाञ्जलि २९२ २७३, २८३, २८७, २९०, ३३९, ३५२ न्यायदीपिका ५८८ (वसनसंयम-खेदमुक्तः )
न्यायमञ्जरी २९२ निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक ३२५-३२७
न्यायावतारवार्तिकवृत्ति-प्रस्तावना (पं० निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ ६४, १०७, ११४, ५५९ दलसुख मालवणिया) ३२ निर्ग्रन्थरूपता ४५५ निर्ग्रन्थशासन ४६८
पउमचरिउ (स्वयम्भू) १० निर्ग्रन्थश्रमणाचार्य (गुहनन्दी) ६५, १४२ पउमचरिय (विमलसूरि) २९७ निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) संघ, सम्प्रदाय, परम्परा पकुध कच्चायन (प्रक्रुध कात्यायन) ३१४,
८,६४, ८४, १४४, १५०, १५१, ३३१, ३१५, ३३३ ४३५, ४३६, ४४६, ४७२, ५६८, ५७१, पञ्च जैनाभास ३८६, ४३३, ४८७ . . ५७३
पञ्चतन्त्र १८, २५८, २६० निशीथचूर्णी ४२७
पञ्चमवर्णी (तमिलजैन) ४७४ निशीथभाष्य (विसाहगणि-महत्तर) ४२७ पञ्चस्तपनिकाय (काशिक) ६५, १४२ निश्छिद्रपाणिपात्र (तीर्थंकर) ३६१
पञ्चाशक १९, ८४, १६० निषीदि ५१७
पञ्चास्तिकाय ९ निष्कच्छ (दिगम्बरमुनि) २६१
- प्रस्तावना (अंग्रेजी-ए० चक्रवर्ती) निष्परिग्रह ३८, ३९, २७७
७० निह्नव ४६-४८, ५७
पट्टावलीपराग ३७० निह्नवमत ६, १२०
पद्मनन्दी (बलात्कारगणाग्रणी भट्टारक) ३६६ नीतिसार (इन्द्रनन्दी) ४८७
पद्मपुराण, पद्मचरित (रविषेण) १०, २८९ नेमिनाथचरित्र ३७५
पद्ममहापुराण (वैदिक) २५४, २८३-२८७ नेमिचन्द्र (डॉ०, ज्योतिषाचार्य) ५८२ पद्मावतीदेवी ४२८ नेमिनाथचरित्र (श्वे० ग्रन्थ) ३७५ परतीर्थिक अन्यतीर्थिक, परशासन, अन्यनेमिनाहचरिउ (हरिभद्रसूरि) ३७५
लिंगी-मुक्तिनिषेध ३८ नैगमेय (देव) ३७३
परमहंस (भिक्षु, संन्यासी) २७६, २७८, नैगमेश (देव) ३७३, ३७५
२७९ नैगमेशिन ३७३
परमहंसोपनिषद् २७९ नैषेधिकी, नैषीधिका ५१९, ५२३ परमहंसपरिव्राजकोपनिषद् २८०
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