Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 798
________________ ६०२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ दर्शनसार (आ० देवसेन) ७९, ११५, ३८४, दीघनिकायपाळि ३१२, ३१४-३१७, ३२५, ४८९, ५१२, ५१३ ३२८, ३३०, ३३७ । दलसुख मालवणिया (पं०) ४, ९, ३२, ४३, दृष्टिवाद अंग ४७१, ४६५, ४६७ ५१, २४० देवकी (कृष्णमाता) ३७३-३७५ दशवैकालिकसूत्र (श्वे०) ३६, १३८, १६७, देवगढ़ की बाहुबलि-प्रतिमा ४१२ १७१, २१५, ४५१ देवगिरि-ताम्रपत्रलेख (श्रीविजयशिवमृगेश- हारिभद्रीय वृत्ति १३१, २१५ __ वर्मा) १०७, १४१, १४९, १५० दशा (शिश्न) ३३९ देवगिरि-ताम्रपत्रलेख (देववर्मा) ३९०, ४३४ दाठावंस (बौद्धग्रन्थ) ३११ देवताश्रित नाम (जैनदर्शन का) १४७ दार्शनिक विकासवाद ९ देवदूष्य वस्त्र ३५९, ३६१, ४१५ दासीकटिका (गोदासगण की शाखा) ४११, देवनन्दा ब्राह्मणी ३७५ ५७६ देवनन्दी, पूज्यपाद स्वामी, (देखिये, 'पूज्यदिक्पट २० पाद') दिगम्बर (जैनमुनि) २५८, २६२, २६७, २८३, देवर्द्धिगणि-क्षमाश्रमण १०२, ४२२, ४२३, २९२, २९३, ५७२ ४४९, ४६३, ५७६ दिगम्बर-अर्धफालक-भेद ४६४ देवसेन (आचार्य, दर्शनसार के कर्ता) ४५८ दिगम्बरत्व और दिगम्बरमुनि (कामताप्रसाद देवसेन (प्राकृत-भावसंग्रहकार) ४५७, ४५८ जैन) ३१२ देवेन्द्र मुनि शास्त्री १७२ दिगम्बरपरम्परा का पूर्वज दक्षिण-प्रस्थित देशभूषण (आचार्य) १३२ अचेल निर्ग्रन्थसंघ ४८० देशिय (देशीय, देशी) गण ५६६ दिगम्बरमत ४, २९४, ५७३ देहली-टोपरा-सप्तम-स्तम्भलेख (सम्राट दिगम्बरमुद्रा १५६ अशोक) ६५, १४० दिगम्बरजैनसंघ (सम्प्रदाय, परम्परा) ५, २०, द्राविड़संघ ७९, ४३४, ५१३ १४४, ४३४, ४४५, ४४६, ४७२, ४७३, द्वादशवर्षीयदुर्भिक्ष ३७७, ४५२, ४५७, ४६३ ५७२ दिगम्बर-श्वेताम्बर-भेद ४४५, ४७४, ४६४, धम्मपद (बौद्धग्रन्थ) ३४३ ४७२ धम्मपद-अट्ठकथा ३१०, ३४०, ३४२, ३४६, दिग्वासस् ९, २६८, २७१, २९८, ४८५, ४८६ ३५२ दिव्यावदान (बौद्धग्रन्थ) १०७, ११५, ३१०, धरसेन (आचार्य) १३२ ३३८, ३३९, ३५२, ३५३ धर्मनन्दी आचार्य (अहरिष्टिश्रमणसंघ) ३९० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844