Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 799
________________ शब्दविशेष-सूची /६०३ धर्मलाभ हो (आशीर्वचन-श्वेताम्बर, नन्दिमित्र (श्रुतकेवली) १३२, ४४७ यापनीय) ४९, ५०, ४९३, ५७२ नयनार (तमिलजैन) ४७४ धर्मवृद्धि हो (आशीर्वाद-दिगम्बर) ४९, नरेन्द्रसागर सूरि (श्वे० आचार्य) १२८ ५०, २५८, २५९, ४९३, ५७२ नागरी प्रचारिणी (पत्रिका) ५१८ धर्मशाट-प्रतिच्छन्न (धर्मवस्त्र से आच्छादित नाग्न्यपरीषह १३० __ = नग्न) ३३९ नाग्न्यपरीषहजय ७, ९९ धर्मसंग्रहणीसूत्र (श्वे०) ३६१ नाग्न्यलिंग ४९, ५७२ - वृत्ति ८८, ३६१ नाग्न्यव्रत ५४ धर्मसागर उपाध्याय (प्रवचनपरीक्षा-कार, नाटकसमयसार १३७ श्वे०) ६, ३९३ नाथूराम प्रेमी, पं० १०, ५५, ५१२ नाभि (ती० ऋषभदेव के पिता) २४१, नक्षत्र (एकादशांगधारी) १३२ २६२-२६४ नगराज डी० लिट्०, श्वेताम्बरमुनि १०४, नारदपरिव्राजकोपनिषद् २७९, २८० १७३, ३४५, ३४६, ३४९, ३५०, ४४७ नारायण (त्रिखण्डचक्रवर्ती) ३७४ नग्गसमणक (नग्नश्रमणक) ३४० नारिकेलमय पानपात्र (कमण्डलु) २८५ नग्गिकपटिक्खेपकथा (महावग्ग-पालि) ३१७ नारीमुक्ति ३६४ नग्न (दिगम्बरमुनि) २६१, २६२, २६७, निगंठ (निगण्ठ) ६५, १४०, ३११, ३१६, २७१, २८५, २९० ३२२,३३०,३३१,३३४,३४० (निगण्ठ नग्नक (दिगम्बरमुनि) २५८, ३३९ = नग्गसमण), ३४८, ३५० नग्न क्षपण (नग्गखवणो) १८, ५३ निगण्ठनाटपुत्त, निगण्ठनातपुत्त ३१०, ३१२, नग्नक्षपणक २५१, २५४, २५६, २५७, २५९, ३१४, ३१५, ३३०, ३३१, ३३३, ३३७, २८२ नग्न जिनप्रतिमा ३८६, ४३१, ४३२ । निगण्ठपुत्तसच्चक, सच्चकनिगण्ठो (निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का सच्चक नामक श्रावक) नग्नाट २९८ ३२५-३२७, ३२९-३३४ नग्नाटक १९, २८२ निगण्ठवत्थु-अट्ठकथा (धम्मपद-अट्ठकथा) नथमल टाँटिया, डॉ० ५८२ ३४२, ३४५ नन्दगोप ३७४ निगण्ठसुत्त (अंगुत्तरनिकाय) ३११ नन्दराज (नन्दिवर्द्धन) ४०५ निघण्टु २५० नन्दवत्स (नन्दो वच्छो) ३२६, ३२७ निमित्तज्ञान ४५७ नन्दवंश ४०६ निरुक्त २५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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