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३८० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०५ / प्र० १
सिन्धु देश चले गये थे, वे आहारप्राप्ति में होनेवाली बाधाओं के कारण नग्नत्व को आच्छादित करने के लिए अर्धफालक धारण करने लगे थे। इन्हीं साधुओं के सम्प्रदाय का नाम अर्धफालक - सम्प्रदाय पड़ा। पं० कैलाशचन्द्र जी लिखते हैं
" यद्यपि हरिषेण से पहले किसी ग्रन्थ में इस सम्प्रदाय का कोई निर्देश अभी तक नहीं मिला है, किन्तु मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त जैन अवशेषों में से एक शिलापट्ट १० में एक जैन साधु बिल्कुल उसी रूप में अंकित है, जिस रूप का निर्देश कथाकोश में किया गया है ११ और उसे जैनयति कृष्ण की मूर्ति बतलाया है। " (जै.सा. इ./ पू. पी. / पृ. ३८२ - ३८३) ।
" श्री बूहलर ने (इण्डि० ऐण्टि०, जि०२, पृ० ३१६) लिखा था- - नेमिष देवता के बाएँ घुटने के पास एक छोटी सी आकृति नंगे मनुष्य की है, जो बाएँ हाथ में वस्त्र होने से तथा दाहिना हाथ ऊपर को उठा होने से एक सांधु मालूम होता है ।
'लखनऊ संग्रहालय के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने उक्त शिलापट्ट के सम्बन्ध में लिखा था- ' - ' पट्ट के ऊपरी भाग में स्तूप के दो ओर चार तीर्थंकर हैं, जिनमें से तीसरे पार्श्वनाथ ( सर्पफणालंकृत) और चौथे संभवतः भगवान् महावीर हैं। पहले दो ऋषभनाथ और नेमिनाथ हो सकते हैं। पर तीर्थंकर मूर्तियों पर न कोई चिह्न है और न वस्त्र । पट्ट में नीचे एक स्त्री और उसके सामने एक नग्न श्रमण खुदा हुआ है। वह एक हाथ में सम्मार्जनी और बाएँ हाथ में एक कपड़ा ( लँगोट) लिए हुए है, शेष शरीर नग्न है । (जै. सि. भा. / भाग १० / कि. २ / पृ. ८० का फुटनोट ) ।
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" चित्र के देखने से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि कण्ह ने बाएँ हाथ से वस्त्रखण्ड को मध्य से पकड़ा हुआ है और सामने करके उससे उन्होंने अपनी नग्नता मात्र को छिपाया हुआ है। सम्भवतः श्वेताम्बर - सम्प्रदाय के पूर्वज अर्धफालक - सम्प्रदाय का यह रूप था। यह संभव है कि उसे अर्धफालक सम्प्रदाय नाम से न कहा जाता हो और दिगम्बरों ने ही वस्त्रखण्ड रखने के कारण उन्हें यह नाम दे दिया हो । " (जै. सा. इ./ पू. पी. ./पृ. ३८३-३८४) ।
९. देखिए, वही ।
१०. यह शिलापट्ट लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित है। ११. यावन्न शोभनः कालः जायते साधवः स्फुटम् ।
तावच्च वामहस्तेन पुरः कृत्वाऽर्धफालकम् ॥ ५८ ॥ भिक्षापात्रं समादाय दक्षिणेन करेण च ।
गृहीत्वा नक्तमाहारं कुरुध्वं भोजनं दिने ॥ ५९ ॥ (१३१ भद्रबाहुकथानक / हरिषेण : बृ.क.को.) ।
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