Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 789
________________ शब्दविशेष-सूची /५९३ आजीवकिनियाँ (आजीविक सम्प्रदाय की History of India, 1953) : Sir साध्वियाँ या स्त्रियाँ) ३२०, ३२२ ___Mortimer Wheeler ४००, ४४१ आजीविकों का आचार ३२५-३२९ इण्डस वेली सिविलिजेशन एण्ड ऋषभदेव : आदिनाथ (हठयोगविद्योपदेष्टा) २८१, ३९५ वी.जी. नैयर ४०३ इण्डियन ऐण्टिक्वेरी (The Indian Antiआदिपुराण २५०, ३९५, ५८४ आपुलीय (आपुली) संघ (यापनीयसंघ) quary) Vol. XX, October, 1891) ३६६ ४९४ Indian Historical Quarterly, Vol. VIII, आयागपट्ट ४११ __No. 250 ३९६ आर्य (एलक) २८९ इन्द्रिय-यापनीय ५०१ आर्यलिंगधारी (एलक) २८९ आर्यकृष्ण (बोटिक शिवभूति के गुरु) ३८, ह ३८, ईचवाडि (मैसूर)-अभिलेख ५६६ ४३, ११८, ११९, २२५, ३८३, ४७७ । ईशाद्यष्टोत्तर-शतोपनिषद् २११, २७८ आर्यरक्षित (श्वे. आचार्य) ९७, ३७० आर्यशूर (जातकमालाकार) ३५१, ३५२ उग्रसेन (कृष्णमाता देवकी के पिता) ३७४ आर्यिका रात्रिमति-कन्ति ५०६ उज्जयिनी नगरी ४५९, ४६०, ४६२, ४६४ आहेत (जैन) १४७, १४८, २६८, २८२, उड़ीसा ४७४ २८६ उत्तङ्क (महाभारतोल्लिखित ब्रह्मर्षि) २५५, आर्हतानुशासन (जैनमत) २९४ २५६ आलापपद्धति १५९ उत्तमसंहननधारी १०१ . आवश्यकचूर्णि ३३, ४६ उत्तरपुराण (गुणभद्र) ३७५, ५५२ आवश्यकनियुक्ति (भद्रबाहु-द्वितीय, श्वे.) उत्तरभारत में जैनधर्म (चिमनलाल जैचंद २०, २१, ४६, १५६, ३६२, ३६३ शाह) ५८, ३७१, ३७९, ४०७, ४६८ -हारिभद्रायवृत्ति २१, ३७, ४४, ४८, उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्यन्थसंघ (परम्परा. ५७, ६० सम्प्रदाय)४,११,१२,८०,८३,१०६आवश्यकमूलभाष्य ४, २०, २१, ४६, ११५ १०८, ११०, ११४, ११५, १५१, ३८३, आशाम्बर (दिगम्बर) २० ४७५ (उत्तर का निर्ग्रन्थ-संघ), ४९१, आश्वलायनगृह्यसूत्र २५१ ५५८, Aspects of Jainology उत्तरा (बोटिक शिवभूत की बहिन) २५, -Vol. II ३२, ४३, ५१ उत्तराध्ययनसूत्र १९, ८४, १२६, १६०, १६४, Indus Valley Civiligation (Cambridge ३२४, ५७७, ५७९ २७ द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844