Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
View full book text
________________
शब्दविशेष-सूची
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथमखण्डान्तर्गत प्रथम अध्याय से लेकर सप्तम अध्याय तक आये विशिष्ट शब्दों (व्यक्तियों, स्थानों, ग्रन्थों, लेखों, अभिलेखों, कथाओं, सम्प्रदायों, गणगच्छों इत्यादि के वाचक तथा पारिभाषिक शब्दों) की सूची नीचे दी जा रही है। इसमें पादटिप्पणीगत शब्द भी समाविष्ट हैं। दो पृष्ठांकों के बीच में प्रयुक्त योजकचिह्न (-) बीच के पृष्ठों का सूचक है।
अ
अकलङ्कदेव (भट्ट) १३१, १३२ अंगुत्तरनिकायपालि ३१९ - ३२१, ३२४, ३२५ अग्गिवेस्सन (अग्निवेश, निगण्ठपुत्त सच्चक
का नामान्तर) ३२६ अग्रावतार (कटिवस्त्र, श्वे० साधु) ३७० अचेल, अचेलक ४, १७ – १९, २५, ३९, ८४, १३८, १६०, २८८, ३१२, ३२२, ३२४, ३२५ अचेल (सर्वथा निर्वस्त्र - आचारांग ) १६२, १६३
अचेल (अल्पचेल - शीलांकाचार्य) १६२ अचेल (सद्-अचेल, असद्-अचेल) १५९,
१७६
अचेल ( मुख्यवृत्त्या अचेल, उपचारत: अचेल) १७७
अचेलक ( श्वेतजीर्णप्राय - वस्त्रधारी ) १७९ अचेलकधर्म १०६
अचेल कस्सप (काश्यप) - एक निर्ग्रन्थ मुनि ३२५, ३२९
अचेलतीर्थ ८, १९.
अचेलत्व (ता) ३९, ९३, १५५ अचेलत्व, अचेलता (मुख्य, औपचारिक)
७, १७७
Jain Education International
अचेलपरम्परा १५५ अचेललिंग ७३
अचेल श्रावक ( अचेलकों के श्रावक) ३२० अचेल - सचेलधर्म (उत्त. सू.) १६० अजातशत्रु ३१५, ३१६ अजितकुमार शास्त्री (पं०) २५०, ३७१ अजितकेसकम्बल (उच्छेदवादी) ३१४
३१६, ३३३ अथर्ववेद २४८
अदरगुंचि-अभिलेख २७७ अध्यात्मनिष्ठ २७७
अनग्न - अचेल - जिनप्रतिमा ३९२ अनेकान्तवाद २६२, २६८ अनेकान्त (मासिक पत्र) १६६, २८९१, ३९८, ४३४, ५०४, ५१०, ५१८, ५२६, ५३१, ५७४
अन्धकवृष्णि ३७४
अन्यतीर्थिक (अन्यमत - प्रवर्तक तीर्थंकरछह ) ३५, ३८, ३१४, ३१५, ३१७ अपदान (बौद्धग्रन्थ) १०७, ११५, १४५,
२९७, ३१३
अपभ्रंशमय शास्त्र २९९ अपराजित (श्रुतकेवली ) १३२, ४५२ अपराजितसूरि (विजयोदयाटीकाकार) १२३,
१२५, १४४, १५७
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844