Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 792
________________ ५९६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ कुन्दकुन्द आचार्य ४, ९, ३०, ३१, ३८, ६०७०, ७४, ८१, ८२, १३२, २३१, ४७३ कुन्दकुन्दान्वय ४९२, ५६६ कुमरगिरि - कुमारीगिरि (खण्डगिरि - उदयगिरि) ४०५, ५१७ कुमारगुप्त (गुप्तसम्राट्) ४१२ कुमारनन्दी भट्टारक ९ कुमारनन्दि सिद्धान्तदेव ९ कुमुदिगण ५६४ कुमुलिगण ५६४ कुम्भजातक (जातकमाला) ३५१ कुवलयमाला (उद्योतनसूरि, श्वे०) ५१५ कुशचीर ३१८ कुषाणकालीन जिनप्रतिमाएँ १८ कूर्चक ( एक जैन सम्प्रदाय) ६४, १०७, ११४, १४१, ३८९, ५५६, ५५७, ५७० कूर्मपुराण २८७ कृश सांकृत्य (किसो सङ्किच्चो) ३२६, ३२७ कृष्णजन्म ३७४, ३७५ केवलिभुक्ति (कवलाहार) ५३, ४५८, ५७२ केवलिभुक्तिनिषेध ५४ केवलिभुक्तिप्रकरण (पाल्यकीर्तिशाकटायन) ४८६, ५७५ केशलुंचन २८२ केशी २४३, २४५, २४६ केशी - गौतम (संवाद) ८४ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ३३८ कैवल्य २४२ कोङ्गणिवर्मा ( महाधिराज ) ५६२ कोटिवर्षीया (गोदासगण की शाखा ) ४११, Jain Education International ४७६ कोट्टिकगण ३७२, ४११ कोल्हापुर- मंगलवारपेठ-मन्दिर - अभिलेख ५६४ कोषकल्पतरु २५४ कौटिल्य (अर्थशास्त्रकार) २५८ कौण्डिन्य- कोट्टवीर २२,५८६० कौपीन १२९ क्राणूर् (काणूर्) गण ( दिगम्बरसंघ ) ४९२, ५६५ क्लिष्ट कल्पना (क्षु० जिनेन्द्र वर्णी) ग्रन्थसार - पृष्ठ : छियानवे क्षपण (खमण, खवण = दिगम्बर जैन मुनि) २५३, २५४, २९८, ३६४ क्षपणक, नग्नक्षपणक ( दिगम्बर जैन मुनि) १९, २२, २५२ (व्युत्पत्ति), २५३२५९, २६९, २८२, २९३ - २९६ क्षपणकविहार २५९ क्षारवेल (खारवेल) ५२३ क्षुनदेव ( शिश्नदेव ) ४०२ क्षुल्लक २८९, ४७२ क्षेमकीर्ति (श्वे० आचार्य) १७७, १८८ ख Cambridge History of India 1953, खण्डगिरि - उदयगिरि (कुमरगिरि-कुमारी plate XXIII ४०३ गिरि) ४०५, ५२८ कैलाशचन्द्र शास्त्री (पं०) ५६, ७१, ७३, १०१, १८३, २७१, २७२, ३३१, ३८०, ४६६, ४६७, ५८० खण्डचेलक (एलक) २८९ खण्डहरों का वैभव ( मुनि कान्तिसागर ) ३९४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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