Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 791
________________ शब्दविशेष-सूची / ५९५ कलिंगदेश ४०८ काम्बलतीर्थ, काम्बलिकतीर्थ (श्वेताम्बर कल्प (साधुओं का आचार) ८४, १५५, सम्प्रदाय) ४५३, ४५६, ४५७ १६१ कायनिषीदी ५१७ कल्पनियुक्ति (कल्पसूत्रनियुक्ति) ८४, १०२, कायनैषेधिकी ५२३ १५५ कायनिसीदी ५२३ कल्पसूत्र ३७५, ४७६ कायोत्सर्गध्यानमुद्रा ३९५ - कल्पकौमुदीटीका १६१ कायोत्सर्गमुद्रा ३९५ - कल्पलताव्याख्या २३, ५५ कारकल-बाहुबली-प्रतिमा ४१२ - स्थविरावली (थेरावली) ३७१, कालग्रहण २६ ३७२, ४६७, ४७६ कालद्रव्य ५०६ कल्याणनगर ४८९, ४९२ काललब्धि ३८१ कल्याणविजय (श्वे. मुनि) ३, ४, २०, कालवङ्गग्राम १४१ २८-३१, ६०, ६१, ६४, ६७,७६, ७७, कालिदास २६० ९६-९८, ३०१, ३१९, ३२१, ३२३, कालिदास-तिथिसंशुद्धि (डॉ० रामचन्द्र ३२४, ३२९, ३३०, ३३३, ३५१, ३५२, तिवारी) २६१ ३६९, ४४५, ५२६, ५३१, ५४०, ५५६ काव्यानुशासन (हेमचन्द्र) १९०, १९१, १९४ कल्लूरगुड्ड-अभिलेख ५६६ काव्यानुशासन-स्वोपज्ञटीका १९१, १९४ . कसायपाहुड (कषायप्राभृत) १०, २२३ । काव्यप्रकाश (मम्मट) १९३, १९५ - चूर्णिसूत्र १०, ११ काशिक-पंचस्तूपान्वय ६५ कस्तूरमल बाँठिया ४५२ काशीप्रसाद जायसवाल (डॉ०) ७६, ४०३, कहानजी (श्वे. मुनि, पश्चात् दि. श्रावक) ४०५, ४०९, ४१०, ४२७, ५१९, ५२०, १३७ ५५३, ५५४ काडूण ५६५ काश्यपगोत्रीय गोदास (भद्रबाहु के शिष्य) काणूर (क्राणूर) गण ४२९, ४३३, ५६५, ४७६ ५६६ काष्ठासंघ ४९, ७९, ४३४, ५१३, ५७२ कादम्बरी (बाणभट्ट) १९, २८२ कित्याचार्य (यापनीय) ५६५ कान्तिसागर मुनि (श्वे.) ३९४, ४३० कीथ (Keith) ए. बी. ४४८ कापालिक (सरजस्क) २९४ कुटीचक संन्यासी २७९ कापिल २८२ कुण्डपुर (कुण्डग्राम) ३३१ कामताप्रसाद जैन (बाबू) ३१०,३२१,३२९, कुण्डलकेसित्थेरीवत्थु (धम्मपद-अट्ठकथा) ५२६, ५३१ ३४६, ३४७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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