Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 795
________________ ___ ३९६ शब्दविशेष-सूची /५९९ जिनकल्प (दिगम्बर अचेललिंग का जिनेन्द्रदेवता १४१ श्वेताम्बराचार्यों एवं बृहत्प्रभाचन्द्राचार्य जिनेन्द्र वर्णी, क्षुल्लक-ग्रन्थसार पृष्ठ : द्वारा किया गया नामकरण) ६, २४, छियानवे (क्लिष्ट कल्पना) ३८-४०, ७३, ९४- ९६, ९९, १००, जिनेश्वर (मोहेन-जो-दड़ो की मृन्मुद्रा पर) १०१, १०३, १०४ जिनकल्पिक-उपकरण (उपधि-श्वे०) २४, जीतकल्पभाष्य (जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण) ८६-८९ ८४, १६१ जिनकल्पिक साधु (श्वे०) २४, २६, ८६, जीवक कौमारभृत्य (वैद्य) ३१५ ९०, १०१, १०२ जीवन्तस्वामी-प्रतिमा (श्वे०) ४१४, ४३२ जिनकल्प-व्युच्छेद ८७, ९४ जुगलकिशोर मुख्तार (पं०) ५२६, ५३१, जिनकल्प-स्थविरकल्प (दिगम्बरमान्य) ८५ ५३८, ५४० जिनकल्प-स्थविरकल्प (श्वेताम्बरमान्य) जैकोबी (हर्मन, डॉ०) ३२३, ३२४, ४६६, ८६-९३ _ ५१५ जिनकल्प-स्थविरकल्प-भेदोत्पादन ४५५ जैन १४७, २८२, २८६ जिनचन्द्र प्रथम (दि० आचार्य) ४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा जिनचन्द्र (श्वे० आचार्य) ११५, ४५८, ४६० (देवेन्द्रमुनि शास्त्री) ४५,४६,५८,१७२, जिनदास श्रेष्ठी ४८९ ४५१, ४६८ जिननन्दी आचार्य (यापनीय) ३९० जैनदर्शन (इस शब्द की निरुक्ति) १४७ जिनपूजाद्रव्य १४२ जैनधर्म और दर्शन (मुनि प्रमाणसागर) ३९६जिनपूजाविधि ४३१ . ३९८ जिनप्रतिमा जिनसारिसी ३८७, ४१८ जैनधर्म का मौलिक इतिहास (आचार्य जिनबिम्ब (श्वेताम्बरमान्य) ३६८ हस्तीमल) जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण ३, १७, ९५, १०६, - (भाग २) ५८, १३६, ४२९, ४३१ १५६, १७५, १७७, १८०, ३५९ - (भाग ३) ९३, ४१६, ४१७,४२१, जिनभाषित (मासिक पत्र) ३८६ ४२४, ४२६, ४२९, ४९४ जिनमत १४७ जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय (डॉ० सागरमल जिनविजय (श्वे. मुनि) ३६७, ३७१, ५१७, जैन) १०-१२, ३२-३४,५६,५९,७४, ५५२, ५५४ ८१-८४, १११-११३, ३७९, ३८१जिनशासन १४७ ३८४, ४३५, ४६९-४७३, ४८२, ४९४, जिनसेन आचार्य (आदिपुराणकार) १३२ ५००, ५९५, ५७०-५७२, ५७४, ५८०, ५८२, ५८६, ५९० जिनागमों की मूलभाषा ५८२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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