Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 784
________________ पञ्चम प्रकरण यापनीयग्रन्थ के लक्षण कतिपय दिगम्बर और श्वेताम्बर विद्वानों ने भगवती-आराधना, मूलाचार, तत्त्वार्थसूत्र, षट्खण्डागम आदि दिगम्बरजैन-ग्रन्थों को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने की चेष्टा की है। उन्होंने इसके पक्ष में जो हेतु बतलाये हैं, उनमें से अनेक यापनीयग्रन्थ के लक्षण नहीं हैं और जो यापनीयग्रन्थ के लक्षण हैं, वे उक्त ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं हैं। अतः दिगम्बरग्रन्थ और यापनीयग्रन्थ के भेद की पहचान के लिए यह निश्चय करना आवश्यक है कि यापनीयग्रन्थ के असाधारणधर्म या लक्षण क्या हैं? १६८ ___जो धर्म केवल विवक्षित वस्तु में हो, अन्य वस्तुओं में न हो, वह उस वस्तु का असाधारण धर्म या लक्षण कहलाता है।१६९ अतः जिन धर्मों या विशेषताओं का अस्तित्व केवल यापनीयमत के ग्रन्थ में संभव है, अन्य मत के ग्रन्थ में नहीं, वे यापनीयग्रन्थ के असाधारणधर्म या लक्षण हैं। किसी ग्रन्थ के यापनीयग्रन्थ होने या न होने का निर्णय इन असाधारणधर्मरूप हेतुओं की उपलब्धि या अनुपलब्धि से होता है। इसके विपरीत जो धर्म यापनीयग्रन्थ का असाधारणधर्म नहीं है, अपितु यापनीयेतरग्रन्थों में भी उपलब्ध है या हो सकता है, वह किसी ग्रन्थ के यापनीयग्रन्थ होने या न होने का निर्णायक हेतु नहीं हैं, अपितु हेत्वाभास या अहेतु है। नीचे उन धर्मों या विशेषताओं पर प्रकाश डाला जा रहा है, जो यापनीयग्रन्थ के असाधारणधर्म या लक्षण हैं, जिनके सद्भाव या अभाव से यह निर्णय होता है कि अमुक ग्रन्थ यापनीयमत का है या नहीं। यापनीय श्वेताम्बर-आगमों को मानते थे, इसलिए दिगम्बरमुनियों के समान मयूरपिच्छिका-सहित वैकल्पिक नग्नवेश एवं पाणितलभोजित्व की स्वीकृति के अतिरिक्त उनकी प्रायः सभी मान्यताएँ वे ही थीं, जो श्वेताम्बरों की हैं। अतः यापनीयग्रन्थ वह है १. जो श्वेताम्बरीय सिद्धान्तों का प्रतिपादक होते हुए भी श्वेताम्बरग्रन्थ न हो, अर्थात् जिसे श्वेताम्बरों ने अपना ग्रन्थ न माना हो। १६८. "व्यतिकीर्णवस्तुव्यावृत्तिहेतुर्लक्षणम्।" न्यायदीपिका / १ / ३ / पृ. ५-६। १६९. क- “असाधारणचिद्रूपतास्वभावसद्भावाच्चाकाशधर्माधर्मकालपुद्गलेभ्यो भिन्नो --- जीवो नाम पदार्थः।" आत्मख्याति / समयसार / गा.२ __ख-"लक्षणन्त्वसाधारणधर्मवचनम्।" केशवमिश्र : तर्कभाषा / उपोद्धात। पृ.८। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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