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अ० ७ / प्र० १
यापनीयसंघ का इतिहास / ४८७
श्रुतसागर सूरि के अनुसार यापनीयसंघ के मुनि नग्न रहते थे, मोर की पिच्छी रखते थे, पाणितलभोजी थे, नग्नमूर्तियाँ पूजते थे और वन्दना करनेवाले श्रावकों को 'धर्मलाभ' देते थे। ये सब बातें तो दिगम्बरियों जैसी थीं, परन्तु साथ ही वे मानते थे कि स्त्रियों को उसी भव में मोक्ष हो सकता है, केवली भोजन करते हैं और सग्रन्थावस्था और परशासन से भी मुक्ति होना संभव है। इसके सिवाय शाकटायन की अमोघवृत्ति के कुछ उदाहरणों से मालूम होता है कि यापनीयसंघ में आवश्यक, छेदसूत्र, निर्युक्ति और दशवैकालिक आदि ग्रन्थों का पठन-पाठन होता था, अर्थात् इन बातों में वे श्वेताम्बरियों के समान थे।" (जै. सा. इ. / प्र.सं./ पृ. ४४)।
यापनीय-सम्प्रदाय दिगम्बरलिंग (जिनकल्प) एवं श्वेताम्बरमान्य सवस्त्रलिंग ( स्थविरकल्प) दोनों से मुक्ति मानता था । यापनीय आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन स्त्रीनिर्वाणप्रकरण ( कारिका १६) में लिखते हैं कि जैसे स्थविरकल्पी (वस्त्रधारी) मुनियों को मोक्ष होता है, वैसे ही वस्त्रत्याग न करनेवाली स्त्रियों को भी संभव है। (देखिये, अध्याय १५ / प्रकरण १ / शीर्षक २) । पाल्यकीर्ति ने स्त्रीमुक्ति के समर्थन में दिगम्बरमान्य वेदवैषम्य को अमान्य किया है। उनकी वेदवैषम्य - विरोधी युक्तियों का प्ररूपण अध्याय ११ / प्रकरण ५ / शीर्षक १ में अवलोकनीय है।
इस मिलावटी चरित्र के ही कारण इन्द्रनन्दी (११ वीं शती ई०) ने नीतिसार में यापनीयों को पाँच जैनाभासों में परिगणित किया है
गोपुच्छिकः श्वेतावासा द्राविडो यापनीयकः ।
निः पिच्छिकश्चेति पञ्चैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः ॥ १० ॥
ये जैनाभास तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करते थे । श्रुतसागरसूरि ने लिखा है
"या पञ्चजैनाभासैरञ्चलिकारहितापि नग्नमूर्तिरपि प्रतिष्ठिता सा न वन्दनीया, न चार्चनीया । या तु जैनाभासरहितैः साक्षादार्हतसङ्घैः प्रतिष्ठिता चक्षुः स्तनादिषु विकाररहिता नन्दिसङ्घ-सेनसङ्घ-देवसङ्घ-सिंहसङ्घ समुपन्यस्ता सा वन्दनीया ।" (टीका / बोध पाहुड / गा. १०) ।
अनुवाद – “पाँच जैनाभासों द्वारा जो लँगोटीरहित नग्नमूर्ति प्रतिष्ठित की जाती है, वह न वन्दनीय है, न पूजनीय । जो जैनाभासत्वरहित साक्षात् आर्हतसंघ के नन्दिसंघ, सेनसंघ, देवसंघ एवं सिंहसंघ के द्वारा चक्षु - स्तन आदि में विकाररहित मूर्ति प्रतिष्ठित की जाती है, वह वन्दनीय है । "
श्रुतसागरसूरि के इस कथन से मालूम होता है कि यापनीयों द्वारा प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ नग्न होती थीं ।
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