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५०४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०१ आदरणीय डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये ने यापनीयों से सम्बन्धित अभिलेखों का विस्तृत सर्वेक्षण किया है। उन्हें सारे अभिलेख दक्षिणभारत में ही उपलब्ध हुए हैं। उनका विवरण उन्होंने अपने शोधालेख 'जैन सम्प्रदाय के यापनीयसंघ पर कुछ
और प्रकाश' में दिया है, जिसका हिन्दी अनुवाद 'अनेकान्त' के महावीर-निर्वाणविशेषांक (वी० नि० सं० २५०१, सन् १९७५) में प्रकाशित हुआ था। उसका प्रमुख अंश यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ
"कदम्बवंशीय मृगेशवर्मन् (४७५-४९० ई०) ने यापनीय, निग्रंथ और कूर्चकों को अनुदान दिया था, इनके गुरु का नाम दामकीर्ति उल्लिखित है। आगे मृगेशवर्मन् के पुत्र (४९७-५३७ ई०) ने भी कुछ ग्राम अनुदान में दिए थे जिनकी आमदनी से पूजा-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान किए जाते थे और यापनीय साधुओं के चार माह का भरणपोषण किया जाता था। इसमें जिन गुरुओं के नामोल्लेख हैं, वे हैं : दामकीर्ति, जयकीर्ति, बन्धुसेन और कुमारदत्त। संभवतः ये चारों ही यापनीय हों। आगे कृष्णवर्मन् के पुत्र देववर्मन् (४७५-४८० ई०) ने यापनीयसंघ को एक ग्राम दान किया था, जिससे मन्दिर की सुरक्षा और दैनिक देखभाल हो सके। (पृ.२४७)।
"८१२ ई० के कदम्ब-दानपत्र में निम्न विवरण प्राप्त होता है-'राष्ट्रकूट राजा प्रभूतवर्ष ने कुछी (ली) आचार्य के शिष्य अर्ककीर्ति द्वारा संचालित मंदिर को स्वयं दान दिया था, जो यापनीय-नन्दिसंघ, पुन्नागवृक्ष-मूलगण के श्रीकीर्ति आचार्य के उत्तराधिकारी थे (बीच में कई आचार्यों को छोड़कर) अर्ककीर्ति ने कुनुन्गिल देश के शासक (गवर्नर) विमलादित्य का उपचार किया था, जो शनिग्रह के दुष्प्रभाव से पीड़ित था। नौवीं ई० के किरइप्पाक्कम (चिंगलपेट, तमिलनाडु) लेख से देशवल्लभ नामक एक जैनमंदिर का पता चलता है, जो यापनीयसंघ और कुमिलगण के महावीर गुरु के शिष्य अमलमुदल गुरु द्वारा निर्मित कराया गया था।१ और अनुदानपत्र में यापनीयसंघ के साधुओं के भरण-पोषण की भी व्यवस्था का उल्लेख है। (पृ.२४७)।
___ "पूर्वी चालुक्यवंश के अम्म द्वितीय ने जैनमंदिर के लिए मलियपुण्डी (आन्ध्र) ग्राम का अनुदान दिया था। इस मंदिर के अधिकारी यापनीयसंघ (कोटि) मडुवगण
और पुन्यारुह (संभवतः पुन्नागवृक्षगण जैसा ही) नंदीगच्छ के जिननंदी के प्रशिष्य और दिवाकर के शिष्य श्रीमंदिरदेव थे।१२ ९८० ई० का सौदत्ति (सुगंधवर्त्ति) का शिलालेख
९. I.A. VI, pp. 24-27, VII, pp. 33-5. १०. E.C.XII Gubbi 61. ११. A.R.S.I.E. 1954-35, N. 22 p. 10 Delhi 1938. १२. E.I.IX No. 6.
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