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अ०५ / प्र० २
पुरातत्त्व में दिगम्बर - परम्परा के प्रमाण / ४०३ श्री मेकडॉनल अपनी पुस्तक VEDIC MYTHOLOGY के पृष्ठ १५५ पर कहते कि शिश्नदेव की पूजा ऋग्वेद के धार्मिक विचारों के विरुद्ध रही होगी, क्योंकि इन्द्र से प्रार्थना की गई है कि वह शिश्नदेवों को यज्ञों के पास फटकने न दे। ऋग्वेद में यह भी कहा गया है कि इन्द्र ने जब चोरी से शतद्वारोंवाले दुर्ग में निधिकोषों को देखा, तब उसने शिश्नदेवों का वध कर दिया और उन पर कब्जा कर लिया ।
“ये दोनों ऋचाएँ हमारे सामने इस सचाई को व्यक्त कर देती हैं कि हड़प्पा की नग्नमूर्ति में हम सम्भवतः जैनतीर्थंकर के उस विशिष्ट कायोत्सर्गमुद्रा में दर्शन कर रहे हैं, जो आगे चलकर श्रवणबेलगोल, कारकल, वेणूर आदि की जिन प्रतिमाओं में अमर बना दी गयी ।
"किसी को आश्चर्य हो सकता है कि उत्तरकालीन तीर्थंकर - प्रतिमाओं में जैसी कायोत्सर्गमुद्रा निर्मित हुई है, वैसी क्या मोहेन-जो-दड़ो और हड़प्पा के काल (तीन हजार वर्ष ईसापूर्व ) में बनायी जा सकती थी? निश्चितरूप से बनायी जा सकती थी, क्योंकि जैनों के मूलसिद्धान्त 'अहिंसा' की सिद्धि के लिए आवश्यक पूर्ण नग्नता का अवलम्बन और बाह्यपदार्थों से रागद्वेष का परित्याग ऐसी ही मुद्रा की ओर ले जा सकते हैं। यही वह मुद्रा है जिसे हम हड़प्पा की उपर्युक्त प्रतिमा में पाते है। इस प्रकार उपर्युक्त विचारधारा अतिप्राचीनकाल से अविच्छिन्नरूप में चली आ रही है। इस मूर्ति में एक भी ऐसी शैल्पिक विशेषता नहीं है जो हमारी उक्त धारणा को संदिग्ध बना सके, या हमें भ्रान्त कर सके। इसके अतिरिक्त इस मूर्ति की नग्नमुद्रा वेदोक्त महादेव - रुद्र - पशुपति की उस ऊर्ध्वरेतस्- मुद्रा से, जो मोहेन-जोदड़ो की मुहर पर अंकित है, बिलकुल भिन्न है । २५
" वृषभदेव नग्न अवस्था में रहते थे, यह एक निर्विवाद लोकप्रसिद्ध सत्य है, क्योंकि पूर्ण नग्नता मानसिक पवित्रता के लिए अनिवार्य होने के कारण जैनधर्म का मूल सिद्धान्त है। इसलिये यह मूर्ति, जिसका विवरण ऊपर दिया गया है, प्राचीनतम जैन संस्कृति का एक सुन्दर गौरवपूर्ण प्रतीक है । २६
डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ने भी हड़प्पा से प्राप्त उपर्युक्त प्रतिमा को तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा माना है। उनका मत है कि पटना के पास लोहानीपुर से प्राप्त तीर्थंकर महावीर की मूर्ति भारत की सबसे प्राचीन मूर्ति है। हड़प्पा की नग्न मूर्ति और इस जैन मूर्ति में समानता है। इनकी विशेषता है योग मुद्रा । २७
२५. देखिए, Cambridge History of India, 1953, plate XXIII. २६. देखिए, मूल लेख (अँग्रेजी भाषा में) इसी अध्याय के अन्त में 'विस्तृत सन्दर्भ' के अन्तर्गत । २७. 'द इंडस वेली सिविलिजेशन एण्ड ऋषभदेव': वी० जी० नैयर / पृ. १ ('मुनि श्री प्रमाणसागर : जैनधर्म और दर्शन / पृ. ३६ से उद्धृत) ।
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