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३०२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४ / प्र० १
१. " महावीर के साथ गोशालक का झगड़ा हुआ, उस समय जो आजीविक भिक्षु महावीर से जा मिले थे, उन्होंने अपना नाग्न्याचार कायम रक्खा था ।
२.‘“आजीविक और त्रैराशिकों के मत का पूर्वश्रुत में वर्णन होने से ये निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के वर्तुल के बाहर के नहीं हो सकते।
३. " आजीविक नग्न होते थे और दिगम्बर भी नग्न होते हैं।
४. " आजीविक एक दण्ड रखते थे और दिगम्बर भी रखते हैं।
५. " तामिल भाषा में 'आजीविक' शब्द का अर्थ दिगम्बर होता है । ६." शीलाङ्काचार्य के लेख से आजीविक और दिगम्बर एक साबित होते हैं । ७. “ दसवीं सदी के कोषकार हलायुध ने दिगम्बरों को आजीविक लिखा है ।" (श्र.भ.म./पृ.२७५-२७६) ।
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डॉ० हार्नले के इन तर्कों की मीमांसा करते हुए मुनि जी लिखते हैं
१. " डॉ० महोदय के 'महावीर से जा मिलने वाले आजीविक भिक्षु निर्ग्रन्थसंघ में मिलने के बाद भी नग्न ही रहे थे' इस कथन में कुछ भी प्रमाण नहीं है।
२. " पूर्वश्रुत में उल्लेख होने से ही आजीविक और त्रैराशिकों को निर्ग्रन्थसंघ के वर्तुल के भीतर मान लेना भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि पूर्वश्रुत दृष्टिवाद का एक भाग होने से उसमें अन्य दार्शनिकों के मत का उल्लेख होना कोई नयी बात नहीं है । दृष्टिवाद में प्रत्येक दर्शन की आलोचना - प्रत्यालोचना होना स्वाभाविक है। आजीविक और त्रैराशिकों के सिद्धान्त अधिकांश में जैनसिद्धान्तों से मिलते जुलते थे, इस वास्ते सूत्र - विभाग में इनके मतानुसारी सूत्रों का होना कुछ अस्वाभाविक या आश्चर्यजनक नहीं है। और इस कारण से ही इनको निर्ग्रन्थसंघ में मान लेना ठीक नहीं।
३. " आजीविक और दिगम्बर दोनों नग्न होने से भी एक नहीं हो सकते। आजीविकों की ही तरह पूरणकश्यप और उसके अनुयायी भी नग्न रहते थे, तो क्या नग्नता के नाते इनको भी उन दोनों से अभिन्न मान लिया जायगा ? कभी नहीं। वर्तमान समय में निरंजनी आदि अनेक वैष्णव साधुओं की जमातें नग्न रहती हैं, फिर भी यह कभी नहीं कह सकते कि दिगम्बरजैन साधु इनसे अभिन्न हैं ।
४. " दिगम्बर जैनों के एक दण्ड रखने के विधान की बात भी हम सत्य नहीं मान सकते। जहाँ तक हमें ज्ञात है दिगम्बरजैन साधु किसी भी तरह का दण्ड नहीं रखते और न ऐसा करने का उनके शास्त्रों में विधान ही है ।
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