________________ फाईव स्टार होटल, ब्यूटी पार्लर, शॉपिंग, ड्रिंकिंग आदि पैमानों से अपने जीवन का स्तर तय कर रही है। इस भोग-उपभोग की संस्कृति से जीवन मूल्यों का तेजी से ह्रास हुआ है। बाह्य दिखावट और सजावट से आंतरिक सौन्दर्य को न केवल कुचला गया है अपितु उसकी आभा की गिरावट में दिनोंदिन इजाफा हुआ है। स्टेण्डर्ड ऑफ लाईफ की बजाय स्टेण्डर्ड ऑफ लिविंग की मानसिकता ने हमारे 'उजले संस्कारों की खुल्लेआम होली जलाई है। ऐसे में भगवान महावीर के जीवन-मूल्य और जैनत्व के संस्कार कैसे और कहाँ जीवंत रख सकेंगे? एक यक्ष प्रश्न है। जैन-जीवन शैली में उन समस्त तथ्यों का सम्मेलन है, जो हमारे आचार-बिचार में संस्कारों को आंज कर जीवन को परिष्कृत और सुसंस्कृत करते हैं 'विचारों को जो बांध दे रेखाओं में, उसे आचार कहते है। रेखाओं में जो भर दे रंग, उसे संस्कार कहते है।।' प्रज्ञाशील स्वाध्याय प्रेमी अनुज मुनि मनितप्रभसागरजी म. ने अथक पुरूषार्थ साधकर जन-जन के लिये उपयोगी इस ग्रंथरत्न का आलेखन किया है। उनकी परिष्कृत लेखनी से जैनत्व से संबंधित कोई भी विषय इस पुस्तक में अछूता नहीं, रहा है। प्रत्येक बिंदु पर प्रश्नोत्तरी शैली में सधी हुई भाषा में उन्होंने बहुत सहज/ सरल विवेचन प्रस्तुत किया है। उन्होंने इससे पूर्व भी अनेक विषयों पर विस्तृत लेखन किया है। अब तो उन्हें किसी भी विषय पर लिखने की जैसे महारत हासिल हो गयी है। मेरा हृदय भाव विभोर है अपने अनुज मुनि की स्वाध्याय प्रियता एवं लेखन पटुता को निहारकर। उनकी ज्ञान-दर्शन-चारित्र की साधना सिद्धत्व प्राप्ति तक निरंतर इसी प्रकार ऊँचाईयों का स्पर्श करती रहें। प्रस्तुत 'जैन जीवन शैली' ग्रंथ समग्र मानव समाज के लिये पगडंडी बने, जिस पर चलकर प्रत्येक व्यक्ति 'जैनत्व' की गरिमा से अभिषिक्त होकर जिनत्व' की महिमा का वरण कर सके। जैन धर्म को विश्व धर्म की अर्हता तभी मिल सकेगी, जब ऐसी विशिष्ट जीवन शैली विश्व मानव की जीवन शैली बनेगी। यह ग्रंथराज इसी दिशा में अपने कदम बढाये। इसी शुभभावना के साथ..... साध्वी नीलांजनाश्री साध्वी नीलांजनाश्री.