________________ संकलन कोष है। इसमें नवकार मंत्र की मीमांसा से लेकर उन विभिन्न पहलूओं की सहज/सरल भाषा में विवेचना की गयी है, जो व्यक्ति को धार्मिक बनाने के साथ-साथ पारिवारिक, सामाजिक , व्यावहारिक भी बनाते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के रूप में अध्ययन करते हुए हम पाते हैं कि जैन जीवन शैली वैयक्तिक जीवन जीने की कला है। इससे मनुष्य व्यक्तिगत जीवन को कलात्मक, सुसंस्कृत एवं गुणात्मक रूप से जीता हुआ आत्म-विकास के अनेक सोपानों को तय कर विकास की पराकाष्ठा पर भी पहुँच जाता है। जैन जीवन शैली में व्यसनवर्जित है, मांसाहार त्याज्य है। वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हो गया है कि मनुष्य को सुंदर, स्वस्थ एवं दीर्घायु रहना है तो तामसिक और राजसिक आहार छोड़ना ही होगा। फलस्वरूप आज पाश्चात्यवर्ती देशों में शाकाहारियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। जैन जीवन पद्धति में सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन तथा शुद्ध जल ग्रहण का विधान है। आज विज्ञान भी सहमति दे रहा है कि सूर्य की रोशनी में ग्रहण किया गया आहार सुपाच्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। रात्रिभोजन से कब्ज, गैस, आलस्य, अनिद्रा, मोटापा, यहाँ तक कि हृदय रोग का भी खतरा है। एक बार प्रयोग के तौर पर आप इन नियमों, व्रतों को अपना कर देखें। चमत्कार स्वतः जीवन में घटित होगा। स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ-साथ आत्म सुरक्षा देने वाले ये नियम हमारे जीवन का कायाकल्प कर देंगे। जैन जीवन शैली ग्रंथ में वर्णित एक-एक विषय हमारे जीवन को नया पाथेय, नया प्रकाश, नयी प्रेरणा और नयी ऊर्जा देता है। इसमे आध्यात्मिक चेतना , के साथ-साथ दर्शन, तत्व, कर्म, इतिहास, आचार, विचार, आहार, ध्यान, योग, स्वास्थ्य आदि अनेक बिंदुओं का भी विमर्श हुआ है, जो व्यक्ति के तन-मन-जीवन को आराधना, साधना, संयम, प्रेम, मैत्री, करूणा आदि सद्गुणों की खुश्बू से सुवासित एवं संस्कारित करते हैं। मन स्वस्थ है तो शरीर स्वस्थ है। शरीर की स्वस्थता धर्मसाधना का प्रमुख आधार है। वर्तमान के अर्थप्रधान युग में योगा सेंटर, प्राणायम, ध्यान एवं आर्ट ऑफ लिविंग के प्रति लोगों का विशेष आकर्षण बढा है।। दौडती - भागती जिंदगी को अल्पकालीन सुकून देने वाले ये योगा केन्द्र शरीर को स्लिम बना सकते हैं परंतु आहार, विचार, व्यवहार संयम के बिना परिणाम बहुत दूरगामी नहीं हो सकते। आधुनिक बनने की होड में आज की युवा पीढी नाईट क्लब, किटि पार्टी,