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"जैनहितैषी -
परिवर्तन है उस प्रकारका परिवर्तन इस अध्याय के और भी अनेक श्लोकों में पाया जाता है और इस परिवर्तन के द्वारा ग्रंथकर्ताने हिन्दुओंके इस होरा-कथनको भद्रबाहुका बनानेकी चेष्टा की है । रहा तीसरे श्लोकका परिवर्तन, वह बड़ा ही विलक्षण है । इसके मूलमें लिखा था कि ' इस प्रकार बुद्धिमान् ज्योतिषी ( कालवित्तमः भले प्रकार विचार करके फल कहे ' । परन्तु संहिताके कतीने, अपने इस परिवर्तन से, फल कहनेका वह काम मागधोंके राजाके सपुर्द कर दिया है ! और इसलिए उसका यह परिवर्तन यहाँ बिलकुल असंगत मालूम होता है । यदि विसर्गको हटाकर यहाँ ' मागधाधिपः ' के स्थानमें 'मागधाधिप ऐसा सम्बोधन पद भी मान लिया जाय तो भी असम्बद्धता दूर नहीं होती क्योंकि ग्रंथ में इससे पहले उक्त राजाका कोई ऐसा प्रकरण या प्रसंग नहीं है जिससे इस पदका सम्बंध हो सके ।
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( ४ ) हिन्दुओंके यहाँ ' लघुपाराशरी' नाम का भी एक ग्रंथ है और इस ग्रंथसे भी बहुत से श्लोक कुछ परिवर्तनके साथ उठाकर भद्रबाहुसंहिता के अध्याय नं० ४१ में रक्खे हुए मालूम होते हैं, जिनमें से एक श्लोक उदाहरण के तौर पर इस प्रकार है:
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जिनदेवं प्रणम्यादौ सर्वज्ञं विबुधार्चितम् । लक्षणानि च वक्ष्येऽहं भद्रबाहुर्यथागमं ॥ १ ॥ इस पद्यमें, मंगलाचरणके बाद, लिखा है किमैं भद्रबाहु आगमके अनुसार लक्षणोंका कथन करता हूँ।' इस प्रतिज्ञावाक्यसे एक दम ऐसा मालूम होता है कि मानो भद्रबाहु स्वयं इस अध्यायका प्रणयन कर रहे हैं और ये सब शब्द उन्हींकी कलमसे अथवा उन्हींके मुखसे निकले हुए हैं; परंतु नीचे के इन दो पर्योके पढ़नेसे, जो उक्त पद्यके अनन्तर दिये हैं, कुछ और ही मालूम होने लगता है । यथा:पूर्वमायुः परीक्षेत पश्चालक्षणमेव च । आयुर्हीननृनारीणां लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥ २ ॥ नारीणां वामभागे तु पुरुषस्य च दक्षिणे । यथेोक्तं लक्षणं तेषां भद्रबाहुवचो यथा ॥ ३ ॥ पद्य नं० ३ में 'भद्रबाहुवचो यथा' ये शब्द आये हैं, जिनका अर्थ होता है ' भद्रबाहुके दशायुग्मे मध्यगतस्तदयुक् शुभकारिणाम् ॥ ४१ ॥ वचनानुसार अथवा जैसा कि भद्रबाहुने कहा है।' लघुपाराशरी में यह श्लोक इस अर्थात् ये सब वचन खास भद्रबाहुके शब्द दिया है:नहीं हैं - उन्होंने इस अध्यायका प्रणयन नहीं किया बल्कि उनके वचनानुसार ( यदि यह सत्य हो ) किसी दूसरे ही व्यक्तिने इसकी रचना की है । आगे भी इस अध्यायके श्लोक नं०३२, १३१ और १९५ में यही ' भद्रबाहुव
योगो दशास्वपि भवेत्प्रायस्सुयोगकारिणोः ।
प्रकार
दशास्वपि भवेद्योगः प्रायशो योगकारिणोः । दशाद्वयी मध्यगतस्तदयुक् शुभकारिणाम् ॥ १८ ॥ पाठक दोनों पद्यों पर दृष्टि डालकर देखें, कितना सुगम परिवर्तन है ! दो एक शब्दोंको आगे पीछे करदेने तथा किसी किसी शब्दका
गया है । लघुपाराशर के दूसरे पद्योंका भी प्रायः यही हाल है । संहितामें उनका भी इसी प्रकारका परिवर्तन पाया जाता है ।
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(५) भद्रबाहु संहिता के दूसरे खंड में 'लक्षण' नामका एक अध्याय नं० ३७ है, जिसमें प्रधानतः स्त्रीपुरुषोंके अंगों - उपांगों आदि के लक्षणों को दिखलाते हुए उनके शुभाशुभ फलका वर्णन किया है । इस अध्यायका पहला पद्य इस प्रकार है
१ अन्तके २० पद्योंमें कुछ थोड़ेसे हाथी घोड़ोंके
पर्यायवाचक शब्द रख देने मात्र से परिवर्तन हो भी लक्षण दिये हैं ।
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