________________
BIMALAMROMITALIRILD REE हिन्दी-जैनसाहत्यका इतिहास।
affitTTTTTTTTRIEfinitifmiim ITTER
५५९
समरस्थ साहसधीर,
वह हिन्दी है । कविको श्वेताम्बर सम्प्रदायकी श्रीपातसाह निसीर ॥६८॥ प्रधान भाषा गुजरातीका परिचय आधिक रहा तसु जि सकल प्रधान, है, ऐसा जान पड़ता है। गुरु रुवरयण निधान। हिंदुआ राय वजीर,
४ यशोधर चरित्र । लाहौरके बाबू ज्ञानश्रीपुंज मयणह वीर ॥६९॥
चन्दजीने अपनी सूचीमें फफोंदू ग्रामनिवासी
गौरवदास नामके जैनविद्वान्के बनाये हुए इस सिरिमाल-वंशवयंस, मानिनीमानसहंस।
ग्रन्थका उल्लेख किया है और इसके बननेका सोनाराय जीवनपुत्त,
समय १५८१ बतलाया है। जयपुरके बाबा बहुपुत्त परिवर जुत्त ॥ ७० ॥ दुलीचन्दजीके सरस्वतीसदनमें इसकी एक प्रति श्रीमलिक माफर पट्टि,
मौजूद है। बाबाजीने अपनी जैनशास्त्रमालामें हयगय सुहड बहु चट्टि।
इसे लिखा है श्रीपुंज पुंज नरिंद,
४ कृपणचरित्र : यह छोटासा पर बहुत बहु कवित केलि सुछंद ॥७१॥ नवरस विलासउ लोल,
ही सुन्दर और प्रसादगुणसम्पन्न काव्य बम्बई नवगाहगेयकलोल।
दिगम्बर जैनमन्दिरके सरस्वतीभण्डारमें एक निज बुद्धि बहुअ विनाणि,
गुटकेमें लिखा हुआ मौजूद है । इसमें कविने गुरु धम्मफल बहु जाणि ॥७२॥ एक कंजूस धनीका अपनी आँखों देखा हुआ इयपुण्यचरिय प्रबंध,
चरित्र ३५ छप्पय छन्दोंमें किया है । घेल्हके ललिअंग नृपसंबंध।
बेटे ठकुरसी नामके कवि इसके रचयिता हैं। पहुं पास चरियह चित्त,
वे १६ वीं शताब्दीके कवि हैं । पन्द्रहसौ उद्धरिय एह चरित्त ॥७३॥
अस्सीमें उन्होंने इसकी रचना की है, जैसा कि वे २सार-सिखामन रासा।यह ग्रन्थ इन्दौ- अन्तके छप्पयमें कहते हैं:रके श्रीमान यति माणिकचन्दजीके भण्डारमें है;
इसौ जाणि सहु कोई, और उक्त यति महोदयकी कृपासे हमें
मरम मूरिख धन संच्यो। प्राप्त हुआ था । बड़ तपगच्छके जयसुन्दर दान पुण्य उपगारि, सूरिके शिष्य संवेगसुन्दर उपाध्यायने संवत् दित धणु किवै ण खंच्यौ। १५४८ में इसकी रचना की है । कोई मैं पंदरा सौ असइ, २५० पद्योंमें यह समाप्त हुआ है । रचना पोष पांचै जाग जाण्यौ। साधारण है । रातको न खाना, छना हुआ पानी
जिसौ कृपणु इक दीठु, पीना, जीवधात नहीं करना, अमुक अमुक
तिसौ गुणु तासु बखाण्यौ। अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाना आदि बातोंकी शिक्षा
कवि कहइ ठकुरसी घेल्हतणु,
मैं परमत्थु विचारियो। (सिखापन ) इसमें दी गई है । भाषामें गुज
खरचियो त्याहं जीत्यौ जनमु तीकी झलक है-कहीं कहीं अधिक है-तो भी जिह सांच्यौ तिह हारियो।
१ राज्यमें। २ हिन्दू । ३ मंत्री । ४ श्रीमालवंशके कवि अपनी कथाका प्रारंभ इस प्रकार अवतंस-मुकुट । ५ विज्ञानी । ६ प्रभु । ७ पार्श्व। करता है:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org