Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 66
________________ ५८४ MATLATIMILIGIBILITALD जैनहितैषीimmifinitiinfmin कालहीसे इन सब विद्याओंका अध्ययन करना धर्मकी शिक्षाका प्रबंध करनेका तथा कुछ स्थानों में चाहिए ? अथवा क्या यह आवश्यक है कि प्रत्येक हाइ स्कूलोंके खोलनेका उद्योग हमें करना चाहिए। जैनको इन सब विषयों में विशारद ही होना चाहिए, उच्चशिक्षाके लिए कालेजोंके साथम बोडिंग हाउस और क्या यह संभव है ? क्या प्रत्येक व्यक्तिके खोलकर हमें धार्मिक शिक्षाको व्यवस्था करना चाहिए लिए उचित विषयका निश्चय करनेमें व्यक्तिगत तथा हमारे प्रसिद्ध नेता सेठ मानकचंद हीराचंदके रुचिकी ओर बिलकुल ध्यान न देना चाहिए ? बताये हुए मार्गको हमें न छोड़ना चाहिए परन्तु, क्या हमें Jack of all-master of none महाशयो, इसीके साथ में हमें एक · सेंट्रल जैन विद्वान् पैदा करने चाहिए ? महाशयो, आप यह कॉलेज ' खोलनेके लिए भी उद्योग अवश्य करना कदापि न समझें कि मैं धार्मिक शिक्षाका विरोधी चाहिए । जैन कॉलेजका प्रश्न एसोसिएशनकी ही हूं, किन्तु मैं यह अवश्य कहूंगा कि धार्मिकशिक्षाके आयुका है, परन्तु खेद इस बातका है कि इसकी केवल नाम पर ही मोहित होकर हमारे युवकोंको चर्चा तो हम बराबर करते जाते हैं, परन्तु इसके हमें निरर्थक नहीं बनाने चाहिए । इसमें कोई सन्देह लिए कार्य हमने अबतक कुछ भी नहीं किया । नहीं कि लौकिक तथा उदारSecular and liberal मेरी सम्मतिमें हमें उचित है कि हम एक कमेटी शिक्षाने भी संसारको बहुत कुछ लाभ पहुँचाया है। नियुक्त करें जो इस प्रश्नपर सलाह करके हमें इस उसमें एक गुण यह है कि वह हृदयको सत्य ग्रहण बातकी सम्मति दे कि किस स्थानपर हमें यह कॉलेज करनेके योग्य बनाती हुई उसे सत्यके लिए सदा स्थापित करना चाहिए, इसके प्रबंधके लिए क्या खुला रखती है । स्वामी विवेकानंद तथा रामतीर्थक योजना करनी चाहिए तथा इसके लिए द्रव्य कितना समान अनेक उदाहरणोंके रहते मैं यह माननेको तथा किस प्रकारसे हमें एकत्रित करना चाहिए तैयार नहीं हूं कि स्कूलों व कालेजोंकी शिक्षा हमें और इसका संबन्ध सरकारी विश्वविद्यालयोंसे रखना निरे भौतिक-वादी बनाती है। यदि जैनधर्म सत्य चाहिए अथवा यह नवीन हिन्दू विश्वविद्यालयका है तो उसे कोई भी डर नहीं है । मैंने स्कूलमें गर्भित अथवा Constituent कॉलेज होना चाहिए। सीखा था कि, ' मनुष्य मकान बना सकता है, पर भाइयो, यह जो मैंने निवेदन किया वह साधारण क्या वह पत्थर बना सकता है ? तब पत्थर किसने शिक्षाके संबन्धमें है। विशेष-शिक्षाके लिए हमें बनाये ? परमात्माने-परमात्मा इस सृष्टिका कर्ता है। विशेष संस्थायें स्थापित करनी चाहिए । वह शिक्षा जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा है, और वह उसीके बाद कोई शिक्षा नहीं जो कौमकी आवश्यकताओंको छठवीं सदीमें निकला ।' मैंने कॉलेजमें बाइबल ही पूर्ण न करे । जैनधर्म जो वैश्योंका धर्म कहा जाता पढ़ी । परन्तु न तो मैं सृष्टिकर्तावादी हूं न ईसाई है यह ठीक है क्योंक हमसेंसे अधिक व्यापारी होगया हूं, इसलिए इस बातका बहुत बड़ा भय वर्गके हैं। मध्यभारत एजेंसीमें सन् ११ में जैनियोंकी रखनेकी कोई आवश्यकता नहीं कि निरी लौकिक संख्या ८७,४७५ थी, उनमें से ६३,३८९ का शिक्षा बालकोंको धर्म-भ्रष्ट कर देगी । 'जैनधर्मसे व्यवसाय व्यापार था । अन्य स्थानोंका हाल मुझे अविरुद्ध ' शिक्षा पर इतना जोर दिया जाता देख विदित नहीं, परन्तु मैं कह सकता हूं कि अन्य मैंने ये विचार प्रगट करनेकी आवश्यकता समझी। स्थानों में हमारे व्यापार-व्यवसायी भाइयोंका परिमाण, इसी प्रकार महाशयो, माध्यमिक शिक्षाके लिए और भी अधिक होगा । इसीसे हमें यह सम्मति दी भी सरकारी माध्यमिक पाठशालाओंमें हमें अपने जाती है कि हमारी पाठशालाओंमें केवल धार्मिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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