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विविध-प्रसंग । Timitrinfrimoti
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करनेकी स्वतंत्रता है तब तक कन्याविक्रय बन्द नहाए जिससे कि दिखलानेके लिए तो दोनों ही पक्षवाले हो सकता । यह अर्थशास्त्रका नियम है कि जो वस्तु जगत्की रंगभूमि पर अपनी अपनी जीवकी प्रसन्नताका कम पैदा होती है और जिसके ग्राहक बहुत होते हैं राग अलापते हुए उछल रहे हैं; पर वास्तवमें दोनोंवह अवश्य बहुमूल्य हो जायगी । इसमें पापका डर का ही हृदयं 'हार' की अश्रुधाराओंसे भीग गया बतलाना, अधर्म दिखलाना और उपदेश देना प्रायः है। यद्यपि दोनोंका ही हृदय कहता है कि हमारी माँगें निरर्थक है। बहुत थोड़े लोग ऐसे हैं जो कन्याविक्र- रद कर दी गई हैं-हम जो चाहते थे वह नहीं हुभा है, यको अधर्म समझकर छोड़ सकते हैं। शेष लोग तो तो भी बाहरसे जीतकी दुन्दुभी बजानेमें दोनोंको ही तब छोड़ेंगे जब कन्यायें सुदुर्लभकी जगह सुलभतर कुछ संकोच नहीं हो रहा है। हो जायगी । अपव्यय या फिजूलखर्चीका कारण
वेताम्बरियोंकी इच्छा यहाँ तक थी कि पर्वतकी अज्ञानता है। ऐसे लोग अपनी करनीका फल भोग
- सारी मालिकी केवल हमारे हाथमें रहे और हमारे कर स्वयं ही सुधर जाते हैं और दूसरोंको सचेत कर
कर सिवाय वहाँ कोई भी पूजन न कर सके। परन्तु कोर्टने देते हैं। यदि इन्हें देशकी दरिद्रताका, किसानों मज
आज्ञा दी कि २१ टोंकोंपर पूजन करनेका दिगम्बरिदरों और शिल्पव्यवसायियोंकी दुर्दशाका ज्ञान कराया
योंको भी स्वत्व है, और इस तरह श्वेताम्बरोंकी इच्छा जाय और इनके आगे देशके प्रतिदिन आधा
पूर्ण न हुई। इधर जलमंदिरपरसे और चार टोंकोंपरसे पेट रहकर सो जानेवाले १५ करोड़ भारतवासियोंका
दिगम्बरियोंका हक उड़ गया है। 'जैनप्रभात ' के चित्र खड़ा किया जाय, तो संभव है कि इनकी आँखें
सम्पादकने स्पष्ट शब्दोंमें लिखा है कि “हमने स्वयं खुल जायँ और ये अपने लड़कोंकी शादीमें नहीं
जलमान्दिरमें दिगम्बर मूर्तिकी पूजा की है और इन्दौर किन्तु देशके दुःखियोंकी दशा सुधारनेमें अपने धनको लगाने लगे।
हाईकोर्ट के जज श्रीयुत जुगमंदरलालजी एम. ए.
बार-एट-ला ने भी तीन वार जलमन्दिरकी दिगम्बर. १८ मुकद्दमे में जीत किसकी हुई ? मूर्तियों की पूजा की है। इतना ही नहीं बल्कि जिन 'जो कुछ होता है सब अच्छेके लिए होता है,' परसे हमारा हक उठा दिया गया है उन चारों टोंकोंइस कहावतमें बहुत कुछ सत्य समाया हुआ है। मेरी की पूजा भी जज साहबने श्वेताम्बरियोंकी किसी प्रार्थना यदि सर्वथा स्वीकार कर ली जाती और देशके रोक टोकके बिना तीन बार की है । " इस तरह नेताओंके द्वारा शिखरजीके मुकद्दमेंका फैसला कराया दिगम्बरसमाजने एक तो अपना पूजनका हक खो जाता तो संभव है कि अपने उचित अधिकारसे दिया और अब इस मुकद्दमेका आधा खर्च भी उसे अधिक प्राप्त करनेकी आशा रखनेवाले दोनों ही पक्ष देना पड़ेगा । इससे यह बात सहज ही समझमें आ यह कहने लगते कि, “यदि हम सरकारी जायगी कि वास्तवमें दोनों ही पक्षोंकी हार कोर्टके द्वारा और उसके ऊपरकी कोर्ट द्वारा फैसला हुई है. और दोनों ही मन-ही-मन पछता रहे कराते, तो अवश्य जीतते । हमने बड़ी गलती की जो हैं। तथापि इधर उधरसे दबी हुई आवाज सुन आन्दोलन करनेवालोंकी बात मान ली । इसमें हम पड़ती है कि दोनोंही पक्षवाले आगेकी कोर्टमें ठगाये गये ।" प्रकृतिका यह नियम है कि दिनका अपील करेंगे। मुझे विश्वास नहीं है कि कोर्टके महत्त्व रातके बिना, सुखका महत्त्व दुःखके बिना और फैसलेका यह कडुआ फल चखकर, दोनों पक्षोंके असलीका महत्त्व नकलीके बिना नहीं मालम होता। अगुए-समझदार होकर भी-फिरसे इस प्रकारकी सौभाग्यसे इसी समय हजारीबागकी कोर्टसे गलती करनेके लिए तैयार हो जायेंगे। इसमें लाखों शिखरजीके मुकद्दमेका फैसला हो गया । इस रुपया खर्च होनेके सिवाय अगुओंका बहुत ही बहुफैसलेने दोनोंही पक्षपर अपनी माया फैलाई है। मूल्य समय व्यर्थ बरबाद होता है । भाई भाई लड़ते
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