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SAATIBHAIBATMAITHILIBARTIMERCIALIAL
जैनहितैषी
बड़े शहरों में इसके परीक्षाकेन्द्र नियत हो गये हैं। हमारे हिन्दीप्रेमी पाठकोंमेंसे भी कोई सजन जैन अभी दो ही तीन वर्षों में परीक्षालयने कितनी विद्यार्थियों के लिए इस प्रकारके पारितोषिक देनेकी लोकप्रियता प्राप्त की है. इसका अनमान पाठक कृपा करें, तो बहुत लाभ हो । हमें आशा है कि इसीसे कर लेंगे कि इस वर्ष इसकी केवल प्रथमा आगामी वर्ष इससे भी अधिक जैन छात्र इस परीक्षामें परीक्षामें ही १४० विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए हैं जिनमें १२ बैठेंगे और उत्तीर्ण होंगे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ भी हैं । मध्यमाके परीक्षो- १६ एक पाँच सौ रुपयेका पारितोषिक। तीर्ण विद्यार्थियों की संख्या हमें मालूम नहीं है । इन सप्तम हिन्दीसाहित्यसम्मेलन जवलपुरके सभापपरीक्षाओंका पठनक्रम देखकर हमारी धारणा हुई तिको जनहितेच्छुके सम्पादक श्रीयुत वाडीलाल मोतीकि यदि जैनविद्यार्थी, विशेष करके संस्कृतके वि. लाल शाहने तारद्वारा इस प्रकारकी सूचना दी थी कि द्यार्थी, इन परीक्षाओंके पाठ्यग्रन्थ पढ़ लें तो बहुत "जगत् , जीवन और वर्ताव ( कांडेक्ट ) इन विषउपकार हो । संस्कृतके छात्र हिन्दी साहित्य, व्याक- योंपर जैनफिलासफी, वेदान्त फिलासफी और जर्मन रण, इतिहास, गणित, भूगोल, विज्ञान, आदिसे कोरे फिलासफर फ्रेडिरिक निटशेकी फिलासफीके जो रहते है और इस कारण न उनका ज्ञान ही विस्तृत सिद्धान्त हैं उनकासमन्वय ( कम्प्रोमाइज ) करके एक
और समयोपयोगी होता है और न उन्हें हिन्दी हिन्दी निवन्ध लिखनेवाले सर्वश्रेष्ठ लेखकको नकद ५०० लिखना ही आता है। इससे समाजका उनके द्वारा रुपयेका पारितोषिक सम्मेलनकी मार्फत दिया कोई भी काम अच्छी तरह नहीं होसकता है। यदि जायगा। लेखपरीक्षकोंमें एक नाम मेरा भी रहेगा।" वे केवल प्रथमाके ही ग्रन्थ पढ़ लें और परीक्षा दे लें, आशा है कि हमारे जैन ग्रेज्युएटोंका ध्यान इस ओर तो बहुत लाभ हो। यह सोचकर हमने गत वर्षे एक जायगा और वे इस पारितोषिकको प्राप्त करनेका विज्ञापन निकाला था कि जो जैनविद्यार्थी हिन्दीकी यत्न करेंगे। इस विषयमें विशेष पूछताछ करनेके प्रथमा परीक्षामें उत्तीर्ण होंगे, उन्हें प्रत्येकको २०) बीस लिए शाह महाशयसे 'नागदेवी स्ट्रीट बम्बई' के रुपया पारितोषिक दिया जायगा । हर्षकी बात है कि ठिकानेसे पत्रव्यवहार करना चाहिए। इससे उत्साहित होकर कई जैनविद्यार्थी प्रथमापरीक्षामें बैठे और उनमेंसे मदनलाल, निर्मलप्रसाद गार्गीय. गो. १७ बागड़में कन्याविक्रय और अपव्यय । विन्ददास, नन्दकिशोर, मुख्त्यारसिंह, दौलतराम और थान्दलानिवासी श्रीयुक्त टीकमचन्दजी तलेरा नानूराम ये सात विद्यार्थी उत्तीर्ण होकर उक्त पारितोषिक लिखते हैं कि “मैं...में कार्यवश आया हुआ हूँ । प्राप्त करनेके अधिकारी हुए हैं । परन्तु इनमें संस्कृतव। यहाँ हालमें तीन चार सगाइयाँ हुई हैं । तलाश विद्यार्थी शायद कोई भी नहीं है, यह जान कर हमें करनेसे मालूम हुआ कि लड़कियोंके मा-बाप बहुत आश्चर्य हुआ। हमारी कई संस्कृत पाठशालाओंके अच्छे व्यापारी है, तो भी उनमेंसे एकने २२०० विद्यार्थी कलकत्ता, बनारस और पंजाबयूनीवर्सिटीकी रु०, दूसरेने २००० रु. और तीसरेने १८०० रु. संस्कृतपरीक्षायें दिया करते हैं। हमारी तुच्छबुद्धिमें वरपक्षवालोंसे लिये हैं। यहाँ एक और सेठ है जो उनकी अपेक्षा यह परीक्षा बहुत ही उपयोगी और कई सभाओंके सभापतिका आसन सुशोभित कर चुके लाभकारी होगी । यदि पाठशालाओंके संचालक हैं। आपके पास पूँजी तो पाँच सात हजारहीकी है; चाहें, तो वे इस विषयमें अपने छात्रोंको उत्साहित भी परन्तु अपने दश वर्षके लडकेकी शादीमें-जो कि कर सकते हैं । पठनक्रम और नियमावली आदिकी शीघ्र ही होनेवाली है-आप कर्ज लेकर कोई दस हजार पुस्तिका सम्मेलन कार्यालय प्रयागसे तीन आनेके रुपये खर्च करनेवाले हैं। ख़ब तैयारियाँ हो रही है।" टिकट भेजनेसे मिल सकती है । आगामी वर्षके जब तक कन्याओंकी संख्या समाजमें थोड़ी है, लिए हम फिर भी कुछ पारितोषिक नियत करेंगे, विवाहका क्षेत्र अगणित जातियों के कारण संकीर्ण है जिसकी सूचना कुछ समय बाद दी जायगी। यदि और एक एक पुरुषको बुढ़ापे तक कई कई शादियाँ
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