Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 101
________________ HamamammummOLLRON. विविध-प्रसंग । SUAnnuuttintmumummy नहीं है कि वह ऐसी बातोंका उत्तर अपने भाइयोंको जी, बम्बईसे पं. उदयलालजी, बाबू छगनमलजी, शान्तिके साथ देवे ! यदि वह इबका उत्तर देनेके और इन पंक्तियोंका लेखक, वर्धासे सेठचिरजीलालजी लिए लालाजीको ही छोड़ देगी, तब तो उनकी कृपासे बड़जात्या, रहलीसे बाबू दयाचन्दजी बजाज, दमोहसे ब्रह्मचारीजीके समान चाहे जिसकी इज्जत धूल फाँकती बाबू भैयालालजी चौधरी आदि अनेक सज्जन सम्मेफिरेगी। कमेटीके मेम्बर महाशयोंको चाहिए कि वे लनमें शामिल हुए थे । खण्डवेसे और भी कई जैनी लालाजीको यह समझा दें कि कमेटीके कोषमें गरीब भाई आये थे जिनके नाम हम नहीं जानते। जबलऔर अमीर सभीने चन्दा दिया है, और उन सबने पुरके वकील बाबू कन्छेदीलालजी और बाबू कसूरही कमेटीको बनाया है, अतः कमेटी उनकी स्वामिनी चन्दजीने सम्मेलनकी जीजानसे सेवा की थी। दिगनहीं हो सकती। प्रत्येक जैनी-भ्रष्ट और धर्मात्मा, तरह- म्बर जैन बोर्डिंग हाउसकी विशाल इमारत सम्मेलनके पंथी और बसिपथी, पण्डितपंथी और बाबूपंथी- आपसे प्रतिनिधियोंके ठहरनेके लिए दी गई थी। हिन्दी हिसाब पूछ सकता है और आप पर झूठा या सच्चा पुस्तकोंकी प्रदर्शिनी भी जैन बोर्डिंगमें ही खोली गई सन्देह भी कर सकता है। आपका काम उसका समाधान थी। जबलपुरके प्रसिद्ध धनी और अगुआ सिंगई कर देना है, गालियाँ देना या उलटी सीधी बातें गरीबदासजी आदिका भी सम्मेलनसे हार्दिक प्रेम सुनाना नहीं। यदि लालाजी यह न समझें और थोड़ासा था। स्वागतकारिणी कमेटोके चन्देमें भी जबलपुरके काम करनेके कारण अपनेको ‘महापरुष' या जैनी भाइयोंने चन्दा देनेमें आनाकानी नहीं की। 'पट्टधर' समझ बैठे हों, तो कमेटीको उनका यह खण्डवेके बाबू माणिकचन्दजी वकील स्वागतकारिणी सुखस्वप्न शीघ्र ही भंग कर देना चाहिए । इस्तीफा कमेटीके एक प्रधान कार्यकर्ता थे। उनके प्रयत्न और माँगकर उन्हें आदरपूर्वक अलग कर देना चाहिए और उत्साहसे खण्डवेके कुछ विद्यार्थियोंने ' कृष्णार्जुन किसी ऐसे सज्जनको यह काम सौंपना चाहिए जो युद्ध' नामका हिन्दी नाटक खेला जो बहुत ही आपको समाजका सेवक समझता हो । कमेटीकी पसन्द किया गया और जिसकी सारी आमदनी इज्जतमें इससे बहा लगता है कि उसके महामंत्री इस सम्मेलनको दे दी गई। तरह गालियाँ बकनेवाले तुच्छ हृदयके आदमी हैं। इस सम्मेलनके पहले झाँसी में एक प्रान्तीय हिन्दी सम्मेलन भी हुआ था। सहयोगी 'मनि'से मालम हुआ १४ जैनी भाइयोंका हिन्दीप्रेम। कि उसमें भी लखनऊके बाब अजितप्रसादजी - हिन्दी-साहित्यसम्मेलन हिन्दीकी उन्नतिके लिए वकील, बाबू दयाचन्दजी, बाबू गुलाबचन्दजी, इटा. स्थापित हुआ है । वह हिन्दीभाषाभाषी प्रत्येक वेके बाब मदनलालजी वकील, और सेठ चान्दमलजी, मनुष्यकी वस्तु है, उसमें धर्मभेद नहीं है । हर्षका प्र.विश्वंभरदास गार्गीय सेठ मिलापचन्दजी आदि विषय है कि हमारे जैनी भाई भी इस बातको समझ झाँसी निवासियोंने विशेष योग दिया था। गये हैं और उन्होंने अबके जबलपुरके सप्तम हिन्दी ___आशा है कि हमारे भाइयोंका यह हिन्दीप्रेम साहित्यसम्मेलनमें सन्तोषजनक योग दिया है। दिन पर दिन बढ़ता ही जायगा और वे आगामी सार्वजनिक कार्योंमें अपने भाइयोंको इस तरह योग सम्मेलनमें जो इन्दौरमें होनेवाला है इससे भी अधिक देते देखकर हमें बहुत ही सन्तोष होता है । लखन योग देंगे। ऊसे बाबू दयाचन्दजी गोयलीय बी. ए., सागरसे बाबू खूबचन्दजी सोधिया बी. ए. एल.टी.. नरसिंहपुरसे १५ हिन्दी-सहित्यसम्मेलनकी परीक्षामें बाबू माणिकचन्दजी कोचर बी. ए. एल एल, बी., खंड जैन विद्यार्थी। वेसे पाबू माणिकचन्दजी बी.ए.एल एल.बी. और सेठ हिन्दी-साहित्यसम्मेलनकी ओरसे एक परीक्षालय तेजकरनजी, कटनीसे बाबू भैयालालजी, गोटेगाँवसे स्थापित हुआ है जिसकी ओरसे प्रथमा, मध्यमा बाबू मुलायमचन्दजी, भोपालसे बाबू मोतीलाल और उत्तमा, ये तीन परक्षिायें ली जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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