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जैनहितैषी -
उसके प्रतिनिधियों में कितने जैनी हैं ? माना कि म्युनिसिपल कमेटियों के तथा लोकलबोडों के जैनी भाई सभासद हैं, परन्तु बताइए कि इनकी संख्या कितनी है, तथा इनमें उच्चशिक्षाप्राप्त कितने हैं? और क्या हमें यहीं तक जाकर ठहर जाना चाहिए ? मेरी सम्मति में कदापि नहीं । हमें कौंसिलों में प्रवेश करना चाहिए | परन्तु प्रश्न यह होता है कि किस प्रकार यह कार्य किया जाय । हमारे कतिपय भाइयोंकी सम्मति यह जान पड़ती है कि विशेष प्रतिनिधित्व अथवा Special representation के द्वारा हमें भी हमारे मुसलमान भाइयोंके समान कौंसिलोंमें प्रवेश करना चाहिए । महाशयगण, मेरी सम्मति इसके प्रतिकूल है । क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं कि कोई भी योग्य जैनी अथवा कोई भी जैनी कौसिलों के लिए उम्मेदवार हुआ और वह जैनी होने के कारण न चुना गया ' याद नहीं तो फिर जनरल इलेक्टोरेटके ऊपर अविश्वास प्रकट कर विशेष प्रतिनिधित्वका सत्त्व माँगनेके लिए हमारे पास क्या कारण है ? मेरी सम्मतिमें हमें कौंसिलोंमें योग्यता के राजद्दारहीसे, नार्क विशेष प्रतिनिधित्वके बगल के द्वारसे, प्रवेश करना चाहिए ।
प्यारे प्रतिनिधियों, हमें और भी दो एक कामोंको हाथमें लेना चाहिए । हमारे कुछ त्योहारों पर आम छुट्टी कराने का प्रयत्न मैं समझता हूं हमारी एसोसिएशनको करना चाहिए, क्या कि इस कार्य में तीनों संप्रदाय के सहोयोग की आवश्यकता है । हमारी एसोसिएशनको उपदेशकों द्वारा समाजसुधारके विचारोंका प्रचार करनेका अधिक उद्योग करना चाहिए । हमारे युवकोंको अन्य देशों में भेजकर उच्च औद्योगिक तथा साधारण व व्यवसायी शिक्षा दिलाने की योजना करनी चाहिए । हमारे मंदिरोंके कोषमें बहुत वन पड़ा हुआ है, उसे निकालकर शिक्षा तथा कलाकौशल के प्रचार के लिए
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उसका प्रयोग करानेका प्रयत्न हमें करना चाहिए हमारी सार्वजनिक संस्थाओंका कुप्रबन्ध दूर कराकर उनका प्रबंध सुधारनेका उद्योग भी हमें अवश्य करना चाहिए, क्यों कि सार्वजनिक संस्थाओंका प्रबंध ठीक न होना बहुत हानिकारक है । हमारी एसोसिएशनकी नियमावलीका परिवर्तन कर हमें उसका संगठन ऐसा करना चाहिए जिससे एसोसिएशन तीन दिनकी लेकचरबाज़ी छोड़कर साल भर तक वास्तविक कार्य करने के योग्य हो जाय ।
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प्रिय महारायो, आपसे, विशेष कर हमारे अँगरेजीदां भाइयोंसे, मैं एक प्रार्थना और करना चाहता हूं । मैं उनका ध्यान हिंदी भाषाकी ओर - हिंदी साहित्य की ओर -- खींचना चाहता हूं। मुझे यह देखकर बहुत दुःख होता है कि हमारे अँगरेजी पढ़े लिखे भाई हिन्दीभाषा के प्रचारके कार्य में उतना उत्साह नहीं दिखलाते जितना कि उन्हें दिखलाना चाहिए । कतिपय सज्जनों को छोड़कर बाकी इस कार्य से प्रेम प्रकट नहीं करते । हिंदी जातिकी भाषा है | हिंदीका प्रचार अन्य प्रान्तोंके जैनी भाइयों में करनेसे केवल हिंदीहीकी उन्नति न होगी किन्तु हमारी जैन जाति में एकताका भी प्रचार होगा । अतएव हमें चाहिए कि हम हिंदी से प्रेम करें, हिंदी भाषा में लेख तथा पुस्तके लिखें, अपने समस्त निजी तथा सार्वजनिक कार्य हिंदी भाषामें करें, और हिंदी के प्रचार के लिए उद्योग करें ।
एसोसिएशनके सभासदगण, इस भाषणको समाप्त करनेके पहले आपसे मैं यह निवेदन करनेकी आज्ञा चाहता हूं कि जैन कौमकी उन्नति करना तथा जैनधर्मका प्रचार करना यह हमारा एक परम पवित्र कर्तव्य है । जिसने मनुष्य जन्म धारण करके अपने कुल, अपनी जाति, अपने देश, अपने धर्मकी उन्नति के लिए उद्योग नहीं किया उसने कुछ न किया । मेरे विचार में जनसमाजकी सेवा करनेमनुष्यजातिका दुःख दूर करने की अपेक्षा आत्मकल्याणका अच्छा साधन नहीं है । वही सबसे
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