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सभापतिका व्याख्यान । auntimate in IDIITCHITRITITITTER
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हैं तथा दूसरी ओर कहते हैं कि दस्सोंको जिनपूजा- जितनी सराहना की जाय उतनी ही कम है । स्वयं धिकार नहीं है । महाशयो, भारतमें धर्म व समा- उन्होंने जो ग्रन्थोंके अनुवाद इत्यादि किये हैं तथा जका घनिष्ट सम्बन्ध है । मनुष्य सामाजिक जीव मूल पुस्तकें व लेख लिखे हैं उनसे जिनवाणीके होने के कारण जनसमाजसे पृथक् नहीं रह सकता। प्रचारमें बहुत बड़ी सहायता मिली है। अन्य सज्जन यदि हम औरोंको जैनी बनाना चाहते हैं तो भी इसी प्रकार उद्योग कर रहे हैं जो प्रशंसनीय है, क्या यह आवश्यक नहीं है कि हम उन्हें अपनी परन्तु हमें संसारकी प्रायः खास खास भाषाओंमें -समाजमें भी साम्मालत करें ? क्या यह आवश्यक हमारे शास्त्र तथा जैनमत पर मूल पुस्तकें प्रकाशित नहीं है कि हम उन्हें भी अपने ही समान धार्मिक करनी होगी। आराके जैनसिद्धांतभवनको हमें एक अधिकार प्रदान करें ? परन्तु क्या आप बतायेंगे वास्तविक सेंट्रल जैन लायब्रेरी व म्यूजियम बनाना कि हमारी कौममें कितने ऐसे जन विद्यमान हैं जो होगा । स्कूलों व कॉलेजोंमें पढ़नेवाले हमारे विद्यार्थियह कहनेको तैयार हों कि
योंके लिए हमें स्वतंत्र पुस्तकें लिखकर प्रकट करनी " जो चाहता है अपना कल्याण मित्र करना,
होंगी जिससे कि वे सुगमतासे जैनसिद्धान्तोंका
साधारण ज्ञान प्राप्त कर सकें। क्या ही उत्तम हो जगदेकबंधु जिनकी पूजा पवित्र करना।
याद हम इसके लिए एक ऐसा कोर्स बनानेका दिल खोल करके उसको करने दो कोइ भी हो,
भा हा, उद्योग करें जो आरंभिक पाठशालाओंसे लेकर कलते हैं भाव सबके कुल जाति कोई भी हो ॥” कॉलेजों तकमें पढाया जा सके। क्या हम नवीन जैनियों के साथ परस्पर सामा
____ महाशयो, धार्मिक तथा सामाजिक स्थितिहीके जिक संबन्ध करनेके लिए तैयार हैं ? यदि नहीं,
नहा, समान हमें अपनी राजनैतिक स्थितिका भी अवतो क्या हमारा औरोंको जैनी बनानेका उद्योग
लोकन कर अपनी आवश्यकताओं पर विचार निष्फल न होगा ? महाशयो, मेरी सम्मतिमें तो हमें
करना चाहिए । मुझे सदा यह शिकायत रहती है इन सब परिवर्तनोंको ग्रहण करनेके लिए तत्पर
कि हमारे भाई सार्वजनिक कार्यों में बहुत ही कम होना चाहिए तब ही कौमकी उन्नति व धर्मका
भाग लेते हैं; इसी कारण हम राजनैतिक क्षेत्रमें प्रचार होगा।
भारतकी अन्य कौमोंसे पिछड़े हुए हैं । हमारे कुछ अपने धर्मके प्रचारके लिए जैनशास्त्रोंका प्रकाशित मित्र मेरे इस कथनकी सत्यता स्वीकार नहीं करना यह हमारा एक पवित्र कर्तव्य है । यह करते । मैं उनसे प्रार्थना करता हूं कि कृपया वे मुझे प्रसन्नताकी बात है कि हमारा ध्यान इस ओर बतादें कि इस समय हमारी प्रान्तिक कौसिलोंमें अधिकाधिक खिंचता जा रहा है--तौ भी कार्यके अथवा इंपीरियल कौंसिलके सभासदोंमें जैनी कितने विस्तारके आगे इसके लिए हमने जो उद्योग हैं । भारतकी अन्य जातियों के प्रधान प्रधान नेता अबतक किया है व अब कर रहे हैं वह कुछ भी इस बातपर विचार कर रहे हैं कि युद्धके बाद नहीं है। मेरे परममित्र बाबू जगमंदरलालजीके भारतकी शासन-प्रणालीमें क्या क्या सुधार किये उद्योगसे जो जैन लिटरेचर सोसायटी लंडनमें जावें । क्या आप बतायेंगे कि इनमें कितने जैनी स्थापित हुई है उससे बहुत कुछ आशा है, अतएव सम्मिलित हैं ! इसी शहरमें आजकल भारतकी हमें उसे उचित सहायता प्रदान करनी चाहिए। प्रधान राजनैतिक सभा.. इस संबन्धमें बाबू जगमंदरलालजीके परिश्रमकी का आधेवेशन हो रहा है । आप ही बताइए कि
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