Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 84
________________ ६०२ LATHLILABALIBABILIBAIDARBARARD जैनहितैषी। मुझे नर-पिशाच कहता है, कहे। मुझे लोका- LGDOGDS PROPOSAR पवादका भय नहीं है। संसारने मुझपर कौनसा विधवा-विवाह-विचार। उपकार किया है कि मैं उसकी सेवा करूँ ? सच *mom anamom 920000 तो यह है कि संसार रणभूमि है। दया-भिक्षासे ( कलकत्ता हाईकोर्टक भूतपूर्व जज सर गुरुदास प्राणोंकी रक्षा नहीं होती। उसके लिए युद्ध । करना पड़ता है। दया, प्रेम, सहानुभूति, भ्रम बनर्जीके बंगला-लेखका अनुवाद ।) मात्र है। यहाँ केवल करता है। यदि जगदीश्वर दोमेंसे एकके मर जाने पर, विवाहबन्धनका है तो वह अत्यन्त क्रूर है। कदाचित् भगवती तोड़ देना उचित है या नहीं, यह विवाहजगदम्बाके साम्हने हजारों पशुओं का बलिदान सम्बन्धी अन्तिम प्रश्न है । मृत्यु हो जानेपर केवल इसी आभिप्रायसे किया जाता है कि निबल विवाहबन्धन टट जाता है, यह बात प्रायः सर्वत्र और निस्सहायका नाश हो । जिसमें शक्ति नहीं है उसकी स्थितिसे लाभ ही क्या ? इस लिए ' ही मानी जाती है; केवल यूरोपका पोजिटिविस्ट ही भगवती चण्डिका पशओं का रक्त-पान करती सम्प्रदाय * और हिन्दू शास्त्र इसे नहीं मानते। है। वह संसार-रणभूमिमें निर्बल मनुष्यों का भी यद्यपि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पुरुष एक स्त्रीके संहार करती है । विनोद बाबू, कोई इसे माने मर जानेपर अन्य स्त्री ग्रहण कर सकता है; चाहे न माने, मैं मानता हूँ। परन्तु इससे यह नहीं समझा जाता कि उसका ____“मैंने उपकार नहीं किया है। मैं उपकार पहली स्त्रीके साथ सम्बन्ध टूट गया । क्योंकि नहीं करूँगा। मैंने संसारको खूब देख लिया पहली स्त्रीके रहने पर भी हिन्द पति दूसरी स्त्री है; संसारने भी मुझे देख लिया। मुझे न तो अब आशा है, न भय है, न संकोच है। भविष्य ग्रहण कर सकता है । परन्तु पुरुषों के लिए एकसे अंधकार-पूर्ण है। जो कुछ होगा मैं सह लँगा। अधिक विवाह करना, निषिद्ध न होने पर भी यदि मुझे नरककी विषम यंत्रणा सहनी पडे, हिन्दू शास्त्रां में समाहत नहीं है-वह आदरकी तो मैं उसके लिए प्रस्तुत हूँ। " दृष्टिस नहीं देखा जाता X । आगस्ट कोम्टीका __“पर मुझे धनकी तृष्णा नहीं है । लोग सम- यह मत बहुत ही अच्छा है और विवाहके उच्च झते हैं मेरे पास अतल सम्पत्ति है। पर सब भल- आदर्शका अनुयायी है कि 'सीके लिए जिस में हैं। मैं धनकी लालसा नहीं रखता । मैं तरह पतिके वियोग होने पर दूसरा पति ग्रहण किसीको कुछ नहीं देता। पर जो कुछ पाता हूँ करना अनुचित है, पति के लिए भी उसी तरह नष्ट कर डालता हूँ!" स्त्रीवियोग होनेपर अन्य स्त्री ग्रहण करना अनु__डाक्टर बाबू फिर कुछ न बोले । मेरी ओर स्थिर-दृष्टि से देखने लगे। इतनेमें टन टन कर चित है। परन्तु यह आशा अब भी नहीं की आठ बज गये। मैं घर जाने के लिए उनसे बिदा जाती कि इस आदर्शके अनुसार सर्व साधारण माँगने लगा । हरिनाथ बाबूने मुझसे हाथ मिला चल सकेंगे। प्रायः सभी देशों में इसके विपरीत कर कहा, 'जाइए । मैं अब इन नोटोंसे यज्ञ रीति प्रचलित है और हिन्दूसमाजमें यह उच्चादकरूँगा। मैं घर लौट आया। की प्रथा जो थोड़ी बहुत प्रचलित भी है वह स्त्रीकी अमावस्याकी रात्रि थी। सर्वत्र अंधकार था। अपेक्षा पुरुषके लिए बहुत अनुकूल है । अतः पक्षमैंने खिड़की खोलकर देखा कि अन्धकारमें पडकर खद्योत अपनी अल्प ज्योतिको व्यर्थ नष्ट * कोम्टके 'सिस्टम आफ पाजिटिव पालिटी' के कर रहा है। दूसरे वोल्यूमका अध्याय तीमरा और पृष्ट १५७ देखो।+ मनु, अध्याय ३ श्लोक १२-१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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