Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 64
________________ ५८२ लिखे तथा प्रति दशसहस्र ५,८१६ पुरुष अँगरेजी पढ़े लिखे हैं । पढ़न। लिखना तथा अँगरेज़ी जान"नेवाली स्त्रियोंका लेखा इस प्रकार है: प्रति सहस्र पढ़ना लिखना जाननेवाली स्त्रियोंकी संख्या: सन् १८९१ ३ ३ ९ २२ सन् १९०१ १ हिन्दुओं में सिक्खों में - जैनियों में - बौद्धों में ३९८.... ६३७ इसके साथ में हमें यह भी विचार करना पारसियोंमेंमुसलमानों में- २ ३ ईसाइयोंमें ४ ९७ १२५... १३५ चाहिए कि हमारी शिक्षाकी पद्धति कैसी हो । x + प्रथम हमें बालकोंकी प्राथमिक शिक्षाको लेना प्रति दशसहस्र अँग्रेज़ी पढ़ना लिखना जानने चाहिए । इस बात को हम सबको मानना पड़ेगा कि बाली स्त्रियोंकी संख्याः सरकारी प्राथमिक पाठशालाओं में हमारे बालकों को जो शिक्षा मिलती है वह किसी २ अंशमें हमारे २ लिए अत्यंत हानिकारक है । उससे होनेवाली २ हानियों को देखते हुए हम अपने बालकों को सर ३ कारी पाठशालाओंके भरोसे नहीं छोड़ सकते । × ÷ २ १,७०४ । परंतु इसके लिए पृथक् पाठशालायें खोलना ठीक नहीं । यह हमारी शक्तिके भी बाहर है । इसके लिए हिसा करने से हमें कमसे कम ४० लाख रुपये आरंभिक व्ययके लिए तथा ३० लाख रुपये वार्षिक व्ययके लिए आवश्यक होंगे । और यदि यह साध्य भी हो तो भी मेरी सम्मतिमें तो ऐसा करना सर्वांश में वांछनीय नहीं है । हमारे परम प्रिय सम्राट् महाराजा पंचम जॉर्जने चार वर्ष हुए तब दिलोबरके समय अपनी यह इच्छा प्रकट की थी कि इस सारे देश भर में पाठशालाओं तथा कॉलेजों की जाल फैला दी जाय, यह हम भूले नहीं हैं । महाराजा जॉर्जकी इस इच्छा को किसी अंशमें पूर्ण करनेके अभिप्रायसे भारत गवर्नमेंटने वर्तमान समयमें बालकोंके लिए जो अनुमान एक लाख आरंभिक पाठशालायें हैं उनके सिवा थोड़े ही दिनों में Jain Education International ० सन् १९०१ सन् १९११ ५ ७ ... ० www. १ १ ९६१... जैनहितैषी - १८ ४२ .... ५३८..... ... हिन्दुओं में सिक्खोंमें जैनियोंमें बौद्धों में पारसियों में - मुसलमानों में १ ईसाइयों में ६१५... ६०४ महाशयो, इसपरसे हमारी कौमकी शिक्षासंबंधी - दशा संतोषदायक जान पड़ती है, परन्तु हमें जानना चाहिए कि केवल पढ़लिखलेना शिक्षित होना नहीं कहा जासकता । शिक्षाका अर्थ इससे बहुत बडा है । खेद की बात है कि सरकारकी शिक्षासंबंधी रिपोर्टों में जैनजाति हिन्दुओंमें सम्मिलित - रहती है, अतएव हम यह नहीं जान सकते कि हमारी कौममें उच्च शिक्षा, अथवा माध्यमिक शिक्षा या कमसे कम प्राथमिक शिक्षाकी क्या दशा है, तो भी अनुभव से हम यह कह सकते हैं कि हमारी जातिमें उच्च शिक्षितोंकी अथवा माध्यमिक शिक्षा ८ १४ ४० ५८ सन् १९११ प्राप्तोंकी संख्या बहुत ही अल्प है, और स्त्रियों में तो इनकी संख्या और भी अल्प होगी । यदि पढ़ना लिखना जाननेवाले पुरुष तथा स्त्रियाँ दोनोंको मिलाकर देखा जावे तो प्रति सैकड़ा २७ पुरुष स्त्रियाँ लिखना पढ़ना जानते हैं, अर्थात् १०० मेंसे ७३ मनुष्य निरक्षर हैं । इंग्लैंड, जर्मनी तथा जापान आदि देशों में पढ़े लिखोंकी संख्या प्रति सैकड़ा ९९,९८ तथा ९७, इस प्रकारकी है । ऐसी दशा में, महाशयो, आप विचार कीजिए कि जैन जातिमें शिक्षाप्रचारकी कितनी बड़ी आवश्यकता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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