Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 65
________________ सभापतिका व्याख्यान । अवसर अनुमान ९१००० पाठशालाएं और स्थापित कर प्रारंभिक शिक्षाको फैलानेका निश्चय किया है । यद्यपि युद्ध के कारण इस निश्चयके अनुसार कार्य नहीं हो सका है तो भी हमें विश्वास रखना चाहिए कि गवर्नमेंट अपने कथनके अनुसार मिलनेपर अवश्य कार्य करेगी । ऐसी दशामें महाशयो, क्या हमारे लिए यह बुद्धिमानीका कार्य होगा कि सरकार की इन पाठशालाओंसे हम पृथक् रहकर कुछ भी लाभ न उठावें ? हम लोग भी तो सरकारको टेक्स देते हैं । फिर अन्य कौमें तो सरकारकी आयसे Government revenues से शिक्षासंबन्धी लाभ लें और हम अपने को उससे अलग रक्खें क्या यह हमारे लिए अनुचित न होगा? क्या यह श्रेष्ठ न होगा कि हम सरकारसे इस बातकी प्रार्थना करें कि जिन २ बातोंमें इन पाठशालाओंकी शिक्षा हमारे लिए हानिकारक है उन २ बातोंमें उसका सुधार कर उस शिक्षाको अपने उपयुक्त बनावें ? हमारे मुसलमान भाइयोंने इसी नीतिका अवलंबन कर बहुत कुछ सफलता प्राप्त की है, और हम लोग इस नीतिका त्यागकर अपनी पृथक् पाठशालायें स्थापित करते जारहे हैं । हमें स्मरण रखना चाहिए कि अन्यको कौमोंके समान हमें भी स्वत्त्व है कि गवर्नमेंट हमारे उपयुक्त शिक्षा हमारे बालकों को देनेका प्रबंध करे । 1 महाशयो, हमें इस बातका और भी स्मरण रखना चाहिए कि आजकल सरकारी पाठशालाओंमें जितना पढ़ाया जाता है उतना ही बालकोंकी शक्तिके बाहर होनेसे उसका उनके स्वास्थ्यपर बुरा असर होता है, क्रिन्तु हम लोग धार्मिक शिक्षाके लिए पृथक् पाठशालाएं स्थापित कर बालकोंके सिरपर अभ्यासका बोझा डाल उनका स्वास्थ्य और भी खराब करनेकी मानो योजना करते हैं। क्या यह श्रेष्ठ न होगा कि हम गवर्नमेंटसे इस बात की प्रार्थना करें कि हमारे बालकोंको Jain Education International ५८३ धार्मिक शिक्षा सरकारी पाठशालाओंही में पठनकालके भीतर ही देनेका प्रबंध सरकार हमारी सहायतासे करे | यह सच है कि इस विषय में गवर्नमेंट की वर्तमान नीति हमारी इस इच्छा के अनुकूल नहीं है 1 + + धार्मिक शिक्षाके संबन्ध में गवर्नमेंट स्वयं कुछ नहीं किया चाहती, तौ भी मुझे तो आशा है कि यदि हम उचित उद्योग इस बात के लिए करें कि सरकारी पाठशालाओं मैं पठन समयके अंदर ही - Within the school hours — हमारी कौमके बालकोंको धार्मिक शिक्षा देनेका प्रबंध करनेके लिए हमें अनुमति दी जाय तो हमारा उद्योग अवश्य सफल होगा। साथही में मेरी सम्मतिमें खास २ स्थानों में, जहां हमारे बालकों की संख्या अधिक हो वहां हमें एडेड प्रारंभिक स्कूलें खोलनी चाहिए जिनके लिए हम गवर्नमेंटसे आर्थिक सहायता भी पा सकते हैं क्यों कि ऐसा करनेकी इच्छा गवर्नमेंटने प्रकट की है । यदि हम इस नीतिका अनुसरण करेंगे तो निश्चयमेव कुव्यवस्थित पृथक् पाठशालायें स्थापित करनेकी अपेक्षा हमको अधिक लाभ होगा । सरकारी शिक्षापद्धति में धार्मिक शिक्षाका जो अभाव है मैं समझता हूँ कि उसे हमें इसी नीतिसे दूर करना चाहिए । नैतिक शिक्षा के अभावको दूर करनेका सरकारी प्रयत्न आरंभ है । इस प्रकार सरकारी शिक्षापद्धतिमेंसे हमें अन्यान्य दोषों को भी दूर करनेका उद्योग करना चाहिए । परन्तु प्रियप्रतिनिधिगण, मेरे बताये हुए इस मार्ग में यह आपत्ति की जायगी कि इस प्रकारकी अल्पकालिक धार्मिक शिक्षा कदापि यथेष्ट नहीं हो सकती है, और इसलिए उससे अधिक लाभ न होगा । मैं इस प्रकारकी आपत्ति करनेवालोंसे प्रश्न करता हूं कि धार्मिक शिक्षाका अर्थ क्या है ? हमारे धर्ममें तो सब हीं विषय गर्भित हैं - यथा दर्शनशास्त्र, आत्मविया, नीतिविद्या, भूगोलविद्या, न्यायविद्या, इतिहास, नाटक, कथा इत्यादि । क्या हमारे बालकों को आरंभ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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