Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 54
________________ ५७२ mmmmmmmmm जैनहितैषीmmmmmmmm कर दिया। इस पत्रने जान बूझकर अथवा बिना कि हमको क्या करना चाहिए ? इसका संक्षिप्त जाने अर्जुनलालजीके मतका खंडन करनेके बहाने उत्तर एक ही शब्दमें यह है कि 'आन्दोहमारे दिगंबरी भाइयोंके मनमें उनके प्रति बहुत लन'-नियमबद्ध आंदोलन । इस कथनकी कुछ विष भर दिया । एक ऐसी संस्थामें शिक्षा सत्यतामें सन्देह नहीं कि-" आन्दोलन ही पाये हुए-जो आदर्श शिक्षा देनेका दम भरती इंग्लिस्तानके सामाजिक, राजनैतिक तथा औद्योगिक . है-इस पत्रके संपादकको इतना विचार तक न इतिहासकी आत्मा है । आन्दोलनहीके सहारे हुआ कि ऐसे अवसरमें इस प्रकारके लेखोंका बुरा अँगरेज़ोंने अपना अभ्युदय अपनी स्वतंत्रता तथा प्रभाव होगा और सेठीजीके प्रति 'करुणा भाव' संसारकी जातियों में पहला स्थान इत्यादि बड़े बड़े केवल नामके लिए रह जायगा । परन्त भाडयो, कार्योका संपादन किया है।" इसलिए हमें सेठीहमें अब यह विचार करना चाहिए कि सेठीजीको ' जीके लिए न्याय दिलानेके अर्थ पुनः आंदोलन किस प्रकार न्याय मिले । जैन कौम यह नहीं करना चाहिए । परन्तु, महाशयो, यह कहा जा कहती कि पंडित अर्जुनलालजी अपराधी हैं अथवा सकता है कि ऐसे युद्धके समयमें एक ऐसे विषयके निरपराधी; वह यही कहती है कि किसी भी व्यक्ति. लिए जिसका संबन्ध गवर्नमेंट और देशी रियासको बिना जाँचके दण्ड देना अन्याय है-किसी । तोंके रिश्तेके साथ है आंदोलन करना गवर्नमेंटको भी व्याक्तको अपना बचाव न्यायालयमें करने का आपत्तिकारक ( Embarrasing ) होगा । अवसर न देना अन्याय है। हम सेठीजीके लिए तब क्या हमें युद्धका अंत होने तक कुछ न करना गवर्नमेंटसे दयाकी भिक्षा नहीं माँगते. हम उनके चाहिए तथा सेठीजीको कष्ट भोगते हुए अपना लिए न्यायका दावा करते हैं । बटिशजातिकी लाभकारी जीवन कारावासमें बिताने देना चाहिए ? न्यायबुद्धिमें भारतवासियोंका जो विश्वास है वह यह यह कौन कह सकता है कि युद्धका अंत कब भारतमें बृटिश शासनका एक आधार है। कोई होगा। मेरी सम्मतिमें हमको सबसे पहले समग्र जैन भी कार्य ऐसा करना कि जिससे यह आधार कम कौमके प्रधान प्रधान नेताओंका, यदि वे स्वीकार जोर हो जावे अथवा उपयोगिता (Expediency) . करें तो, एक प्रभावशाली डेप्युटेशन पुनः नियुक्त के निमित्त उस विश्वासकी आहुति दे देना एक . करना चाहिए जो बड़े लाटसाहबकी सेवामें तथा महाराजा जयपुरकी सेवामें उपस्थित होकर सेठीप्रकारसे बृटिशराज्यको हानि पहुँचाना है, अतएव जीके लिए न्यायकी प्रार्थना करे । यदि हमें हमारे शासकोंको उचित है कि वे शीघ्र ही , संतोषदायक उत्तर मिला तो ठीक है, नहीं तो फिर सेठीजीको न्याय प्राप्त करावें । परन्तु जान पड़ता लाचार हमें आंदोलन करना होगा । तब है कि हमारे शासक इन बातोंकी ओर जरा भी , यदि वह आंदोलन गवर्नमेंटको आपत्तिकारक ध्यान दिया नहीं चाहते । ऐसी दशामें हमको (Embarrasing ) हो तो उसके दोषी हम नहीं । क्या करना चाहिए ? सभायें करना, विरोध- यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि वह आंदोलन प्रदर्शक सभायें करना, तार देना, प्रार्थनापत्र मझे विश्वास है कि नियमबद्ध होगा। सभायें करना, भेजना-ये काम हमने थोड़े बहुत किये । हमने अप्रसन्नता प्रकट करना, तार देना, प्रार्थनापत्र बड़े लाटकी सेवामें डेप्युटेशन भेजनेकी योजना भेजना इत्यादि काम यदि व्यवस्थापूर्वक तथा की थी, पर उन्होंने डेप्युटेशनसे मिलना ही स्वीकृत प्रबलताके साथ सतत किये जायँ तो मुझे विश्वास न किया। तब ऐसी दशामें प्रश्न यह होता है है कि सफलता अवश्य प्राप्त होगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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