Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 59
________________ सभापतिका व्याख्यान । बास्तविक लाभ न हो तब हमें विधवाविवाहका प्रचार करना चाहिए । प्रिय प्रतिनिधिगण, मेरी अल्प सम्मतिमें तो इन सब सम्मतियोंमें सत्यका अंश है, परन्तु सर्वथा सत्य इनमें से एक भी सम्मति निश्चित रूपसे नहीं कही जासकती, अतएव इन पर विचार करनेकी आवश्यकता है । महाशयो, इसमें सन्देह नहीं कि बालविवाह भी हमारी क्षतिका एक कारण है, परन्तु मैं समझता हूं कि केवल इसीको रोकनेका उद्योग करनेसे हमारा -हास न रुकेगा । मनुष्यगणनाकी रिपोर्ट इस कथनकी सत्यता सिद्ध करती है । यदि हम मान लें कि बालकों का विवाह २० वर्षकी अवस्थाके पहले न होना चाहिए तो रिपोर्टोंसे विदित होता है कि २० वर्षसे कम आयुके विवाहित पुरुषोंकी संख्या सन् १८९१ में प्रति सैकड़ा अनुमान १३, सन् १९०१ में अनुमान १४, तथा सन् १९११ अनुमान १० थी । इसी प्रकार यदि लड़कियोंके लिए विवाहयोग्य अवस्था १५ वर्षकी मान ली जाय तो इस अवस्था से कमकी विवाहिता लड़कियोंकी संख्या प्रति सैकड़ा सन् १८९१ में १७३, सन् १९०१ में भी १७३ और १९११ मेँ १३३ थी । इससे सिद्ध होता है कि गत दश दह वर्षों में हमारी कौम में बाल विवाह कम होते जा रहे हैं, परन्तु तिसपर भी हमारी संख्या में ह्रास होता जा रहा है, अतएव केवल बालविवाह बंद कर देनेसे हमारी क्षतिका वेग न रुक सकेगा, यह स्पष्ट जान पड़ता है । • भाइयो, दूसरा कारण जो जातिभेदका बताया जाता है उस पर भी हमें विचार करना चाहिए । • हम देखते हैं कि प्रथम तो हमारी कौममें स्त्रियोंकी अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है, परन्तु इन - संख्याओं में अधिक अन्तर न होनेसे यदि हम उसपर अधिक ध्यान दें तो अनुचित न होगा । अब सन् ११ की मनुष्यगणनाके अनुसार हमारी कौममें Jain Education International ५७७ ६, ४३, ५५३, पुरुष थे जिनमेंसे ३,१७,११७ कुआँरे थे । इसी प्रकार ६,०४, ६२९ स्त्रियोंमेंसे १,८१,७०५ स्त्रियां कुआँरी थीं। इतने कुआँरे कुआँरियोंका समाज में विद्यमान होना निःसंदेह हमारे जन्मके अल्पपरिमाणका एक कारण होना हम सबको स्वीकार करना पड़ेगा । कुआँरे कुआँरियोंकी इन संख्याओंमेंसे यदि हम ऐसोंकी संख्या निकाल दें जो संतान पैदा करनेके योग्य साधारणतया नहीं, अर्थात् जो पुरुष २० वर्षसे कम और ४५ वर्षसे अधिक अवस्थाके हैं तथा वे स्त्रियाँ जो १५ वर्षसे कम तथा ४० वर्षसे अधिक अवस्था की हैं, तौ भी हमें यह देखकर दुःख होना चाहिए, महान् खेद होना चाहिए, कि २० बर्षसे ४५ वर्ष तककी आयुके २,३३,०३५ पुरुषोंमेंसे ५९,९१२ कुआँरे, तथा १५ से ४० वर्षतककी आयुकी २,५३,८५४ स्त्रियांमेंसे ५,९२८ स्त्रियाँ कुआँरी, अर्थात् प्रति सैकड़ा पुरुषोंमें २५.७ तथा स्त्रियों में २.३ कुआँरे कुआँरियां हमारी कौममें विद्यमान हैं । महाशयो, विचार कीजिए कि यदि इन ५,९९१२ कुआँरोंके तथा ५,९२८ कुआँरी स्त्रियोंके विवाह हो गये होते तो इनके द्वारा हमारी संख्या में प्रतिवर्ष कितनी वृद्धि होती । इनके कुआँरे रहनेका कारण भला इसके सिवाय क्या हो सकता है कि हमारी समाजमें अल्पसंख्यक अनेक जातियाँ विद्यमान हैं ? दिगम्बर जैन डाइरेक्टरीके देखनेसे विदित होता है कि केवल दिगम्बर संप्रदाय में ४१ जातियां ऐसी हैं जिनकी मनुष्य संख्या ५०० से कम है, १२ जातियों में ५०० से १००० तककी मनुष्य संख्या है, १००० से ५००० तक मनुष्यसंख्याकी जातियां केवल २० हैं, और जिनकी मनुष्यसंख्या ५००० से अधिक है ऐसी केवल १५ जातियां है । कोई कोई जातियोंकी दो, तीन, चार, आठ, सोलह, बीस आदि अल्प मनुष्यसंख्यायें रह गई हैं। मुझे स्मरण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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