Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 39
________________ KALALITALIATIMITRATIMILAIMARATHAILABILIARD हेन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास । HTTTTTTTTTTTTTTTTTTuiuiltTTTTTTTE R પપ૭ ३ संस्कृतमें जैनाचार्य मेरुतुङ्गकृत प्रबन्ध पन्द्रहवीं शताब्दी। चिन्तामणि नामका एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है, १ गौतमरासा । पन्द्रहवीं शताब्दीका सबसे जो शास्त्री रामचन्द्र दीनानाथ दारा छपकर पहला ग्रन्थ 'गौतमरासा' मिला है । इसे संवत् प्रकाशित हो गया है। यह विक्रम संवत् १३६१ १४१२ में उदयवंत या विजयभद्र नामके श्वेतामें बनकर समाप्त हुआ है । इसके कई प्रबन्धोंमें । म म्बर साधुने बनाया है। पाटनमें इसकी एक प्रति यत्र तत्र कुछ दोहे दिये हुए हैं जो अपभ्रंश १५ वीं शताब्दीके उत्तरार्धकी लिखी हुई मिली भाषाके हैं और हिन्दी जैसे जान पड़ते हैं। पड़त है । है । यह ग्रन्थ छप गया है, पर शुद्ध नहीं छपा । ग्रंथकर्ताके समयमें वे जनश्रुतियोंमें या प्रचलित लत इसके प्रारंभके कुछ पद्य ये हैं:-- देशभाषाके किसी जैनग्रन्थमें प्रसिद्ध होंगे, इस कारण उन्हें चौदहवीं शताब्दीके या उससे वीर जिणेसरचरणकमल कमलाकयवासो, पहलेके कह सकते हैं। पणमवि पभणिसु सामि जा मति पाछइ संपजइ, साल गोयमगुरुरासो। सा मति पहिली होइ। मणु तणु चरणु एकंतु मुंजु भणइ मुणालवइ, करवि निसुणउ भो भविया, विधन न बेढ़इ कोइ॥ (पृष्ठ ६२) जिम निवसइ तुम्ह देहि जइ यह रावणु जाइयो, गेहि गुणगण गहगहिया ॥१॥ दह मुहु इक्कु सरीरु। जंबुदीवि सिरिंभरहखित्ति जननि वियंभी चिन्तवइ, खोणीतलमंडणु, कवनु पियाइए खीरु ॥ (पृष्ठ ७०) मगधदेस सेणिय नरेस कसु करु पुत्र कलत्र धी, रिउ-दलबल खंडणु। कसु करु करसण बाड़ि। धणवर गुव्वर नाम गामु आइवु जाइवु एकला जहि गुणगणसज्जी, हत्थ...विवि झाड़ि॥ ( पृष्ठ १२१) विप्पु वसे वसुभूइ मुंजु भणइ मुणालवइ. तत्थ जसु पुहवी भज्जा ॥२॥ जुर्वण्णु गयउ न झुरि। ताण पुत्तु सिरि इंदर्भूइ जइ सक्कर सयखंड थिय, भूवलयपसिद्धउ, तोइ स मीठी चूरि॥ (पृष्ठ ५९) चउदहविज्जों विविहरूप नारी-रस विद्धउ। ___ इन पद्योंमें यद्यपि अपभ्रंश शब्द अधिक हैं, विनय विवेकि विचार सार तो भी इनके समझनेमें पृथ्वीराज रासोकी अपेक्षा गुणगणह मनोहरु, अधिक कठिनाई नहीं पड़ती । इसलिए इनकी भाषाको प्राचीन हिन्दी कहनेमें हमें कोई संकोच १ कमलाकृतवासः-जिनमें लक्ष्मीका निवास है। नहीं होता। २ स्वामि । ३ गोतम । ४ सुनो। ५ जम्बूद्वीप । ६ श्रीभरतक्षेत्र। ७ क्षोणीतलमंडन । ८ श्रेणिक । १ मृणालवती। २ विजूंभित होकर-घबड़ाकर। ९ रिपु । १० सजी हुई। ११ विप्र । १२ वसुभूति । ३ क्षीर-दूध । ४ कृश कर। ५ दोनों । ६ यौवन । १३ पृथ्वी नामकी भार्या। १४ इन्द्रभूति।१५विद्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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