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SamamamamamOLICADAILE
जैनहितैषीAmmunimittamil
सात हाथ सुप्रमाण देह
कोहु मानु माया ( मद) मोहु, रूपिहिं रंभावरु॥३॥
जर झपे पारयउ संदेहु ॥५॥ नेयणवयण करचराण
दान न दिन्नउ मुनिवर जोगु, जिण वि पंकजजलि पाडिय, ना तप तपिउ न भोगेउ भोगु । तेजिहि ताराचंद सूर
सावय घरहि लियउ अवतारु, आकासि भमाडिय।
अनुदिनु मनि चिंतहु नवकारु ॥ ६॥ रुविहि मयणु अनंग
इस ग्रन्थकी प्राचीन हिन्दी और भी अधिक करवि मेल्हिउ निहाडिय,
स्पष्ट हैं । यह मुजरातीकी अपेक्षा हिन्दीकी ओर धीरिम मेरु गंभीर सिंधु चंगिम चय चाडिय॥४॥ बहुत अधिक झुकती हुई है । २ ज्ञानपंचमी चउपई । मगधदेशमें वि- ३ धर्मदत्तचरित्र-इम ग्रन्थका उल्लेख हार करते समय जिनउदयगुरुके शिष्य और मिश्रबन्धुओंने अपने इतिहासमें किया है । इसे ठक्कर माल्हेके पुत्र विद्धणूने संवत १४२ ३ में संवत् १४८६ में दयासागरसूरिने बनाया था। इसकी रचना की है । उदाहरणः--
सोलहवीं शताब्दी। जिणवर सासाण आछइ सारु, जासुन लभइ अंत अपारु ।
१ ललितांगचरित्र; इसे शान्ति सूरिके पढ़हु गुणहु पूजहु निसुनेहु,
शिष्य ईश्वर सूरिने मण्डपदुर्ग ( मडलगढ़ ) के सियपंचमिफलु कहियउ एहु ॥१॥ बादशाह ग्यासुद्दीनके पुत्र नासिनहीन के समय सियपंचाम फलु जाणइ लोइ, (वि० सं० १५५५-१५६९) में, मलिक माफजो नर करइ सो दुहिउ न होइ। रके पट्टधर सोनाराय जीबनके पुत्र पुंज मंत्रीकी संजम मन धरि जो नरु करइ, प्रार्थनासे सं० १५६१ में बनाया है । इसकी सो नरु निश्चइ दुत्तर तरइ॥२॥
रचना बड़ी सुन्दर है । प्राकृत और अपभ्रंशका ओंकार जिणइ (?) चउवीस, सारद सामिनि करउ जगीस।
मिश्रण बहुत है । कवि स्वयं अपने काव्यकी वाहग हंस चडी कर वीण,
प्रशंसा आर्या छन्दमें इस प्रकार करता है:सो जिण सासणि अच्छइ लीण ॥३॥ सालंकारसमत्थं अठदल कमल ऊपनी नारि,
सच्छंदं सरससुगुणसंजुत्तं । जेण पयासिय वेदइ चारि।
ललियंगकुमरचरियं ससिहर बिंबु अमियरसु फुरइ,
ललणालियब्ब निसुणेह ।। नमस्कार तसु 'विद्धणु' करइ॥४
अब थोड़ेसे पद्य और देखिए:चिंतासायर जवि नरु परइ, घर धंधल सयलइ वीसरइ ।
महिमहति मालवदेस,
धण कणयलच्छि निवेस । १ अपने नेत्रों, वचनों, हाथों और चर
तिहं नयर मंडवदुग्म, गोंकी शोभासे पराजित करके जिसने पंकजोंको
अहिनवउ जाण कि संग्ग ॥६७॥ जलमें पठा दिये । २ तेजसे चन्द्रसूर्यको आकाशमें
तिहं अतुलबल गुणवंत, भमाया । ३ रूपसे मदनको अनंग ( विनः अंगका) बनाके निर्धारित कर दिया या निकाल दिया।
श्रीग्याससुत जयवंत। ४ श्रुतपंचमी । ५ दुखी । ६ दुस्तर ।
१ कनक-सुवर्ण । २ अभिनव । ३ स्वर्ग ।
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