Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ ५४८ KHALIBOORTILITAMITRAILE जैनहितैषी। जैनहितैषी। जैन कविके इन वचनोंम देखिए ईश्वरके कर्तृ- रादिके निरूपण करनेवाले ग्रन्थ उन्होंने भावका कितना गहरा नहीं लिखे । ___७ हिन्दीके जैनसाहित्यकी प्रकृति शान्तरस ९ यह हमें मानना पड़ेगा कि जैन कवियोंमें है। इसके प्रत्येक ग्रन्थमें इसी रसकी प्रधानता उच्च श्रेणीके कवि बहुत ही थोड़े हुए हैं। बनारसीहै। शृंगारादि रसोंके ग्रन्थोंका इसमें प्रायः दास सर्वश्रेष्ठ जैनकवि हैं । रूपचन्द, भूधरदास, अभाव है । इतने बड़े साहित्यमें एक भी अलं- भगवतीदास, आनन्दघन, उच्चश्रेणीमें गिने जा कार या नायिकाभेद आदिका ग्रन्थ देखनेमें सकते हैं। दीपचंद, द्यानतराय, माल, यशोविजय, नहीं आया । जयपुरके एक पस्तकभण्डारकी वृन्दावन, बुलाकीदास, दौलतराम, बुधजन आदि सू में दीवान लालमाणके 'रसप्रकाश अलं- दूसरी श्रेणीके कवि हैं। इनकी संख्या भी कम कार ' नामके ग्रन्थका उल्लेख है; पर हमने है। तीसरे दर्जे के कवि अगणित हैं । जो उच्चउसे देखा नहीं । सुनते हैं हनुमच्चरित्र और श्रेणीके कवि हुए हैं, उन्होंने प्रायः ऐसे विषयोंपर शान्तिनाथचरित्रके कर्ता सेवाराम राजपूतने भी रचना की है जिनको साधारण बुद्धिके लोग समझ नहीं सकते हैं। चरित या कथाग्रन्थोंकी यदि ये एक 'रसग्रन्थ' बनाया था; पर वह अप्राप्य है। कविवर बनारसीदासजीकी भी कछ शंगाररसकी लोग रचना करते तो बहुत लाभ होता।चरितोंमें __एक पार्श्वपुराण ही ऐसा है जो एक उच्चश्रेणीके रचना था, पर उन्होंने उसे यमुनाम बहा कविके द्वारा रचा गया है। फिर भी उसमें नरक. दिया था ! स्वर्ग, त्रैलोक्य, कर्मप्रकृति, गुणस्थानादिका विशेष ___ संस्कृत और प्राकृतमें जैनोंके बनाये हुए वर्णन किये बना कविसे न रहा गया और शृंगारादिके ग्रन्थ बहुत मिलते हैं । उस समयके इसलिए वह भी एक प्रकारसे तात्त्विक ग्रन्थ बन जैनविद्वानोंको तो इस विषयका परहेज नहीं गया है। उसमें कथाभाग बहुत कम है। इस तरह था । यहाँ तक कि बड़े बड़े मुनियोंके बनाये साधारणोपयोगी प्रभावशाली चरितग्रन्थोंका जैनहुए भी काव्यग्रन्थ हैं जो शृंगाररससे लबालब भरे साहित्यमें प्रायः अभाव है और जैनसमाज तुलहुए हैं । तब यह एक विचारणीय बात है कि सीकृत रामायण जैसे उत्कृष्ट ग्रन्थोंके आनन्दसे हिन्दीके लेखकोंने इस ओर क्यों ध्यान वंचित है । शीलकथा, दर्शनकथा, और खुशालनहीं दिया । इसका कारण यही जान चन्दजीके पद्मपुराण आदिकी रद्दी निःसत्व पड़ता है कि जिस समय जैनोंने हिन्दीके ग्रन्थ कविताको पढते पढ़ते जैनसमाज यह भूल ही लिखे हैं उस समय उन्हें जैनधर्मका ज्ञान फैलाने- गया है कि अच्छी कविता कैसी होती है। की, और जैनधर्मकी रक्षा करनेकी ही धुन विशेष १० गद्यलेखकोंमें तथा टीकाकारोंमें टोडरथी । उनका ध्येय धर्म था, साहित्य नहीं। इसी मल्ल सर्वश्रेष्ठ हैं । जयचन्द, हेमराज, आत्माराम, कारण उन्होंने इस ओर कोई खास प्रयत्न नहीं नेणसी मूता अच्छे लेखक हुए हैं । सदासुख, किया । पर उन्हें इस विषयसे कोई परहेज नहीं भागचन्द, दौलतराम, जगजीवन, देवीदास था । यही कारण है जो उन्होंने स्त्रियोंके नख- आदि मध्यम श्रेणीके लेखक हैं। बाकी सब शिखवर्णन और विविध शृंगारचेष्टाओंसे भरे हुए साधारण हैं । गद्यमें श्वेताम्बरोंका साहित्य प्रायः आदिपुराण आदिके अनुवाद लिखनेमें संकोच है ही नहीं, मुनि आत्मारामजाक अवश्य ही कुछ नहीं किया है। हाँ खालिस शृंगार और अलंका- ग्रन्थ हैं जो गणनीय हैं । शेष श्वेताम्बरी साहि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104