Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ STIANIMAITHILIAMITRALLIAM I NATIBARD हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास । ५५१ भी भ्रमसे हिन्दीका समझ लिया गया है। इसका बदलने लगता है वैसे ही भारतीय भाषाओंका दूसरा नाम 'प्राकृत व्याश्रय महाकाव्य ' है। यह भी रूप परिवर्तित होने लगता है। इसके पहले जैनाचार्य हेमचन्द्र द्वारा बनाया गया है और उत्तर और पश्चिमभारतमें वह अपभ्रंश भाषा कुछ १३ वीं शताब्दीमें ही-कुमारपालके समयमें ही- थोड़ेसे हेर-फेरके साथ, बोली जाती थी, जिसका इसकी रचना हुई है । इसे बम्बईकी गवर्नमेंटने व्याकरण हेमचंद्रसूरिने अपने 'सिद्धहैम-शछपाकर प्रकाशित भी कर दिया है । इसमें ब्दानुशासन ' नामक महान् व्याकरणके अष्टमाप्राकृत, सौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश भाषा- ध्यायके चतुर्थपादके ३२९ वें सूत्रसे लेकर ओंका संग्रह है और इन सबको ‘भाषा ' कहते अंतिम सूत्र ४४८ वें तक (१२० सूत्रोंमें ) लिखा हैं । जान पड़ता है, इसी कारण यह हिन्दीका है । हेमचंद्रसूरि अपने समयके सबसे बड़े वैयाग्रन्थ समझ लिया गया है। इसके सिवाय इसका करण थे। उन्होंने अपने व्याकरणके पहले ७ अपभ्रंश भाग ( श्रीमान् मुनि जिनविजय- अध्यायोंमें संस्कृतका सर्वांगपूर्ण व्याकरण लिख जीके कथनानुसार ) पुराने ढंगकी हिन्दीसे कर आठवें अध्यायमें प्राकृत वगैरह व्यावहारिक १०-१२ आने भर मिलता है। इस कारण भी भाषाओंका व्याकरण बनाया। अंतमें अपनी इसके हिन्दी समझ लिये जानेकी संभावना है। मातृभाषा-प्रचलित देशभाषा-कि जिसका नाम इसके बादके भूपति कविकी भाषासे यह बोध उन्होंने 'अपभ्रंश' रक्खा है, उसका व्याकनहीं होता कि वह संवत् १३५४ के लगभगका रण भी लिख डाला। यह काम सबसे पहले कवि है। उसकी भाषा सोलहवीं सदीसे पहलेकी उन्होंने ही किया। उन्होंने अपभ्रंशका केवल नहीं मालूम होती । नाल्ह आदिकी रचनाके विष- व्याकरण ही नहीं लिखा; परंतु कोश और छन्दोयमें भी हमें सन्देह है । मिश्रबन्धुओंने इसके नियम भी बना दिये । व्याकरण कोश और सम्बन्धमें कोई भी सन्तोषयोग्य प्रमाण नहीं छन्दोंके उदाहरणोंमें सैकड़ों पद्य आपने उन दिये हैं। अतः चन्दको छोड़कर सबसे पहले ग्रन्थोंके दिये हैं जो उस समय, देशभाषाके निश्चित कवि महात्मा गोरखनाथ हैं जि- सर्वोच्च और प्रतिष्ठित ग्रन्थ गिने जाते थे। नको समय खोजके लेखकोंमें सं० १४०७ हेमचंद्रसरिने अपनी जन्मभाषाका गजराती निश्चित किया है (यद्यपि हमें इस समयमें भी सन्देह हिन्दी और मराठी आदि कोई खास नाम है)। अर्थात् पृथ्वीराज रासोको छोड़कर हिन्दीके न रखकर 'अपभ्रंश' ऐसा सामान्य नाम उपलब्ध साहित्यका प्रारंभ विक्रमी १५ वीं रक्खा है जिसका कारण यह है कि वह भाषा शताब्दीसे होता है। उस समय, उसी रूपमें बिलकुल थोड़ेसे . १० हिन्दीका प्रारंभ । भेदके साथ भारतके बहुतसे प्रदेशोंमें बोली हमारे विचारसे हिन्दीका प्रारंभ तेरहवीं शता- जाती थी । इस लिए आचार्य हेमचंद्रने उसे ब्दीके मध्यभागसे होता है। जो समय भारतके खास किसी प्रदेशकी भाषा न मान कर राष्ट्रीयभावोंमें बड़ा भारी परिवर्तन करता है वही सामान्य अपभ्रंश भाषा मानी । अच्छा तो अब उसकी भाषाओंमें भी सविशेष परिवर्तन करता यह बात उपस्थित होगी कि यह अपभ्रंश है । दिल्लीश्वर पृथ्वीराज चौहानके पतनके बाद (विकृतरूप) किस भाषाका था। इस प्रश्नका भारतके स्वातंत्र्यका जिस तरह एकदम स्वरूप उत्तर हमें केवल जैनसाहित्यसे मिलेगा और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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