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हिन्दी-जेनसाहित्यका इतिहास ।
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त्य पद्यमें है । श्वेताम्बरी साहित्य जितना उप- राती और हिन्दी दो भाषाओंमें निकलता है। लब्ध है, उसमें तात्त्विक चर्चा बहुत ही कम है, श्वेताम्बर सम्प्रदायक साप्ताहिक 'जैनशासन में केवल कथाग्रन्थ हैं।
भी हिन्दकि कुछ लेख रहते हैं। ‘जैनसंसार' ११ आधुनिक समयके जैनलेखकोंने सर्वोप- और 'जैन मुनि' क्रमसे श्वेताम्बर और स्थानकयोगी और सार्वजनिक पुस्तकोंका लिखना भी शुरू वासी सम्प्रदायके नवजात पत्र हैं। . कर दिया है। उन्होंने अपने प्राचीन क्षेत्रसे-केवल इनके पहले हिन्दीके और भी कई पत्र निकधार्मिक साहित्यसे बाहर भी कदम बढ़ाया है। लकर बन्द हो चुके हैं । जहाँतक हम जानते हैं, अभी ५-७ वर्षोंसे इस विषयमें खासी उन्नति सबसे पहला हिन्दी जैनपत्र 'जैनप्रभाकर' था, हुई है। उच्चश्रेणीकी अँगरेजी शिक्षा पाये हुए जो अजमेरसे निकलता था। यह कई वर्ष तक युवकोंका ध्यान इस ओर विशेष आकर्षित हुआ चलता रहा । यह कोई २०-२२ वर्ष पहलेकी है। ऐसे सज्जनोंका परिचय इस निबन्धके बात है । लाहौरकी ‘जैनपत्रिका' ८-१० अन्त में दिया गया है। आशा है कि थोड़े ही वर्ष तक चलकर बन्द हो गई । जैनतत्त्वप्रकासमयमें जैनसमाजमें हिन्दी लेखकोंकी एक शक, जैनपताका, जैननारीहितकारी, जैनकाफी संख्या हो जायगी और उनके द्वारा सिद्धान्तभास्कर कोई दो दो वर्ष चलकर बन्द हिन्दीकी अच्छी सेवा होगी।
हो गये। इनमें 'सिद्धान्तभास्कर' उल्लेख योग्य ६ सामयिक साहित्य। पत्र था। आत्मानन्द जैनपत्रिका श्वेताम्बरजैनसमाजके कई हिन्दी पत्र भी निकलते .
र सम्प्रदायकी मासिक पत्रिका थी । यह ५-७ वर्ष हैं। इनकी संख्या खासी है । अधिकांश हिन्दी .
" चलकर बन्द हो गई। 'जैनरत्नमाला' और 'जैनी' पत्र दिगम्बर सम्प्रदायके हैं । साप्ताहिकोंमें
: एक एक वर्ष तक ही जीवत रहे । 'स्याद्वादी' जैनगजट और जैनमित्र हैं । जैनमित्रकी
और 'चित्तविनोद' का एक ही एक अंक निकला! दशा अच्छी · है, पर जैनगजट तो पत्रोंका जयपुरस 'जनप्रदाप ' नामका पत्र भी कुछ कलङ्क है । मासिकोंमें जैनहितैषी, जातिप्रबो- महीनोंतक निकलता रहा था। धक, जैनप्रभात, दिगम्बर जैन, और सत्यवादी एक दो सार्वजनिक पत्र भी जैनोंके द्वारा हैं । इनमेंसे पिछला पुराने विचारवालोंका मुख- प्रकाशित होते हैं । देहलीके साप्ताहिक 'हिन्दी पत्र है । 'दिगम्बर जैन ' केवल यहाँ वहाँके समा- समाचार' के स्वामी सेठ माठूमलजी और देहचारों और लेखोंको आँख बन्द करके संग्रह कर रादूनके 'भारतहितैषी' के सम्पादक और प्रकाशक देनेवाला है । उसके कोई खास खयाल नहीं हैं। लाला गुलशनरायजी जैनी हैं। हिन्दीके सुप्रसिद्ध उसमे आधी गुजराती भी रहती है। 'जाति- अस्तंगत 'समालोचक' पत्रके स्वामी मि० प्रबोधक' केवल सामाजिक सुधारका काम जैनवैद्य भी जैनी थे। करता है। इसके सम्पादक एक ग्रेज्युएट हैं ।
जैनोंटाग हिन्दीकी 'जैनप्रभात ' एक सेठोंकी सभाका पत्र है, इस लिए उसे बहुत कुछ दबकर लिखना पड़ता है।
उन्नतिकी चेष्टा। 'स्थानकवासी कान्फरेस प्रकाश' स्थानक- आपको मालूम होगा कि बम्बईके हिन्दीवासी सम्प्रदायका साप्ताहिक पत्र है । यह गुज- ग्रन्थरत्नाकर कार्यालयके संचालक जैनी हैं।
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