Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ HELLBHABILIBAB I TAHARIHARMILLIABILIBRARY SEX हिन्दी-जनसाहित्यका इतिहास। REminentrmulimmintiminfinity HTTER ५४७ उन्होंने ऐसा नहीं किया। जब हम पं० जय- हैं कि एक चौबीसी पूजापाठ बना डाला है। चन्द्रजीके अनुवाद किये हुए ग्रन्थोंकी सूचीमें मजा यह है कि इन सब रचनाओंमें विशेषता 'भक्तामरचरित्र' का नाम देखते हैं, तब इनकी कुछ नहीं। सबमें एक ही बात । एक दूसरेका 'प्राचीन-श्रद्धा' पर आश्चर्य होता है। संस्कृत - अनुकरण । इनका बनाना भी चूरनके लटकोंसे में भट्टारकोंके बनाये हुए ऐसे पचासों ग्रन्थ हैं जो . ज्यादा कठिन नहीं है । जिसके जीमें रचनाकी दृष्टिसे कौड़ी कामके नहीं हैं, तो भी " आता है वही एक पूजा बना डालता है। उनके हिन्दी अनुवाद हो गये हैं और अनुवाद नुवाद आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि संस्कृत और करनेवालोंमें बहुतसे ऐसे हैं जो यदि चाहते तो प्राकतमें पजापाठके ग्रन्थ बहुत ही कम उपलब्ध मूलसे भी कई गुणी अच्छी रचना कर सकते हैं. और जो हैं वे उच्च श्रेणीके हैं । पर हिन्दीथे-वे स्वयं ही मूलसे अच्छी संस्कृत लिखनेकी वालोंने इसके लिए मलग्रन्थोंका सहारा लेनेकी योग्यता रखते थे। जरूरत नहीं समझी । बस, इसी एक विषयके ६ हिन्दीके जैनसाहित्यको हम चार भागोंमें ग्रन्थोंकी हिन्दी-जैनकवियोंने सबसे आधिक विभक्त करते हैं, एक भागमें तो तात्त्विक ग्रन्थ स्वतंत्र रचना की है ! पिछले दिनोंमें जैनसम्प्रहैं, दूसरे में पुराण चरित्र कथाद हैं, तीसरेमें पूजा दायमें पूजा प्रतिष्ठाओंको जो विशेष प्रधानता दी पाठ हैं और चौथेमें पदभजन विनती आदि हैं। गई है, उसीका यह परिणाम है । इस समयकी इनमेंसे पहले तीन प्रकारके ग्रन्थोंका परिमाण दृष्टिसे जैनोंका सबसे बड़ा काम पूजा-प्रतिष्ठा लगभग बराबर बराबर होगा । पहले दो विषय करना-कराना है। पद-भजन-स्तवनादि सम्बन्धी ऐसे हैं कि उन पर चाहे जितना लिखा जा चौथे प्रकारके साहित्य पहले तीन प्रकारकासाहित्यों सकता है, पर यह बात लोगोंकी समझमें कम जितना तो नहीं है, तो भी कम नहीं है। परिआयगी कि पूजापाठके ग्रन्थ भी उक्त दोनों श्रम करनेसे कई हजार जैनपदोंका संग्रह हो विषयोंके ही बराबर हैं। सचमच ही इस विषयमें सकता है। भूधर, द्यानत, दौलत, भागचन्द, जैनोंने 'अति' कर डाली है। हमने अपने इस बनारसी आदिके पद अच्छे समझे जाते हैं। निबन्धमें जो जुदे जुदे कवियोंके ग्रन्थ बत- इनका प्रचार भी खूब है । इस साहित्यसे और लाये हैं, उनमें पूजापाठके ग्रन्थ प्रायः छोड़ दिये पूजासाहित्यसे जैनधर्ममें 'भक्तिरस ' की बहुत हैं और जिन कवियोंने केवल पूजापाठोंकी ही पुष्टि हुई है। किसी किसी कविने तो इस रसके रचना की है, उनका तो हमने उल्लेख भी नहीं प्रवाहमें बहकर मानो इस बातको भुला ही दिया किया है । एक ही एक प्रकारके पूजा पाठ दश है कि 'जैनधर्म ईश्वरके कर्तापनेको स्वीकार दश बीस बीस कवियोंने बनानेकी कृपा की है। नहीं करता, अतः उसमें भक्तिकी सीमा बहुत ही चौबीसी पूजापाठ तो कमसे कम २०-२५ मर्यादित है ।' इस विषयमें जान पड़ता है जैनकवियोंके बनाये हुए होंगे। इनका ताँता अबतक धर्म पर वैष्णवधर्मके भक्तिमार्गका ही बहुत कुछ भी लगा जा रहा है। लोगोंको अब भी संतोष नहीं प्रभाव पड़ा है । कहीं कहीं यह प्रभाव बहुत ही है। केवलारी (सिवनी) के एक सज्जनने अभी स्पष्ट हो गया है । एक कवि कहता है-" नाथ हाल ही एक पूजापाठ रचकर प्रकाशित किया है। मोहि जैसे बने तैसे तारो; मोरी करनी कछु न कुचामनके पं . जिनेश्वरदासजीने भी सुनते विचारो।" 'करनी' को ही ईश्वर माननेवाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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