Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ ५४४ जैनहितैषी - ३ खोजकी जरूरत । जैसा कि हम पहले कह चुके हैं श्वेताम्बरोंका हिन्दी साहित्य अभीतक प्रकाशित ही नहीं हुआ है । पर हमें विश्वास है कि श्वेताम्बर सम्प्रदायका भी बहुतसा साहित्य तलाश करनेसे मिल सकता है । अभी थोड़े ही दिन पहले हमने जोधपुर के प्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुंशी देवीप्रसादजीको पत्र लिखकर हिन्दीके जैन साहित्य के विषयमें कुछ पूछताछ की थी । उसके उत्तर में उन्होंने लिखा था कि “ओसवालों के बहुतसे ग्रन्थ यहाँ ढूँढ़नेसे मिल सकते हैं । मैंने उनकी कविता संग्रह की है | आप छापें, तो मैं ग्रन्थाकारमें तैयार करा कर भेजूँ । हर एक कविकी कुछ कुछ जीवनी भी है । " १ राजपूताना और मालवेके यतियों के पुस्तकालयों में हिन्दी के प्राचीनग्रन्थोंके मिलनेकी आशा है । अभी हमने इन्दौर के यतिवर्य श्रीयुत माणिकचन्दजीके सेवामें एक पत्र इस विषय में लिखा था कि उन्होंने अपनी ' जगरूप जति लायब्रेरी ' के १०० से अधिक जैन ग्रन्थोंकी सूची तैयार करके भेज दी जिनमें उनके कथनानुसार हिन्दी या हिन्दी मिश्रित गुजराती ग्रन्थ ही अधिक हैं और उनमें से जिन चार ग्रन्थोंके देखनेकी हमने इच्छा प्रकट की, उन्हें भी भेज दिया । इस तरह और और यतियोंके पुस्तकालयों में भी सैकड़ों ग्रन्थ होंगे । २ पाटण, जैसलमेर, ईडर, जयपुर आदिके प्राचीन पुस्तकभण्डारोंमें हिन्दी ग्रन्थोंका अन्वेषण खास तौर से होना चाहिए । अभीतक इन भण्डारोंका अन्वेषण संस्कृत के पण्डितोंने ही किया है, जिनकी दृष्टिमें भाषाका कोई महत्त्व नहीं है । यह भी संभव है कि उक्त भण्डारोंके प्राचीन हिन्दी ग्रन्थ प्राकृत समझ लिये गये हों । अभी मुनि महोदय जिनविजयजीको पाटणके Jain Education International भण्डारमें मालकविके 'भोजप्रबन्ध' और 'पुरन्दरकुमर-च उपई' नामके दो हिन्दी ग्रन्थ मिले हैं । ३ इस निबन्धमें आगे हमने जिन ग्रन्थोंका उल्लेख किया है, उनका बहुत बड़ा भाग आगरे और जयपुर के आसपासका बना हुआ है । बुन्देलखंड आदि प्रान्तोंमें भी बहुतसे हिन्दी जैनग्रंथ मिलनेकी संभावना है। जयपुर में कोई दोसौ तीन सौ वर्षोंसे ऐसा प्रबन्ध है कि यहाँ ग्रन्थ लिखा लिखाकर दूर दूरके लोग ले जाते हैं अथवा लिखकर मँगवा लेते हैं । यही कारण है जो सारे दिगम्बर सम्प्रदाय में यहींके और यहाँ से निकट सम्बन्ध रखनेवाले आगरेके बने हुए ही हिन्दी - ग्रन्थोंका फैलाव हो गया है । अन्यत्र जो ग्रन्थ बने होंगे, वे प्रचारकी उक्त सुविधा न होनेके कारण वहीं पड़े रहे होंगे । यह सच है कि आगरे और जयपुर में विद्वानों का समूह अधिक रहा है, इतना और स्थानों में नहीं रहा है, तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि अन्यत्र विद्वान् थे ही नहीं और उन्होंने ग्रंथरचना सर्वथा की ही नहीं । अतः अन्यत्र खोज होनी चाहिए । ४ जहाँ जहाँ दिगम्बर सम्प्रदाय के भट्टारकोंकी गद्दियाँ हैं वहाँ वहाँके सरस्वतीमन्दिरों में भी अनेक हिन्दी के ग्रन्थोंके प्राप्त होनेकी आशा है । हमारा अनुमान है कि भट्टारकोंके बनाये हुए हिन्दीग्रन्थ बहुत होने चाहिए, परन्तु हमारे इस निबन्धमें आप देखेंगे कि चार ही छह भट्टारकोंके ग्रन्थोंका उल्लेख है । जयपुर में तेरह पंथका बहुत जोर रहा है, इसी कारण उसके प्रतिपक्षी भट्टारकोंके ग्रन्थोंका वहाँसे अधिक प्रचार नहीं हो सका है । भट्टारकोंका साहित्य उन्हीं के भंडारोंमें पड़ा होगा । ५ दक्षिण और गुजरात में भी खोज करनेसे हिन्दी ग्रन्थ मिलेंगे । गुजराती और मराठी में दिग For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104