Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ जैन- भक्तिके अंग ३५ जिनप्रभसूरिने वस्तुति [ पाटण ग्रन्थ भण्डारकी सूची, पृष्ठ २६७ ], जिनजन्म महः स्तोत्रम् [२७३], जिनजन्माभिषेक: [ २७५ ], जिनमहिमा [१८९ ] और मुनिसुव्रतस्तोत्रम् [ २७५ ] की रचना की थी । ये जिनप्रभसूरि आगमगच्छीय देवभद्रसूरि के शिष्य थे और विविधतीर्थकल्पके कर्त्तासे भिन्न थे । डाँ० विन्टरनित्सने उनको सुल्तान फिरोज [ १२२०-१२९६ वि. सं०] का मित्र बताया है । पाटण भण्डार की ग्रन्थसूची में इनकी कृति जिनजन्ममहः स्तोत्रम्का रचनाकाल वि० सं० १२९३ दिया हुआ है। इससे स्पष्ट है कि वे विक्रमकी तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्धके कवि थे । इसी ग्रन्थसूची में धर्मसूरिशिष्य [ १३१०७३ वि० सं०] के पार्श्वनाथजन्मकलश: [ ३०८], शान्तिभद्रके जिननमस्कार: [२७३], शान्तिसमुद्रके नवफणपार्श्वनमस्कारः [१४४], वर्धमानसूरिके वीरजिनपारणकम् [ ४१२] स्तोत्र संग्रह [१९५], स्तुतिद्वात्रिंशिका [२५], ऋषभ जिनस्तुति [ ४४, ४५ ], गौतमचरित्रकुलक [२६६], जिनगणधरनमस्कार [ १९२ ] जिनस्तुति [ ४१२], जिनस्तोत्रम् [१४५ ] और शान्तिनाथस्तुति [१३५] की भी सूचना है । श्री धर्मघोषसूरि [वि० सं० १३०२-५७ ] ने महावीर - कलशका निर्माण किया था । इसमें २७ पद्य हैं । यह जैनस्तोत्रसंदोह के प्रथम भाग में प्रकाशित हो चुका है । इसी भाग में 'विविधतीर्थस्तुतयः ' भी संकलित हैं, जिनका निर्माण अपभ्रंश में ही हुआ है । उनके कर्ताका नामोल्लेख नहीं है" । श्री सोमसुन्दर सूरि [वि० सं० १४३० - ९९] ने 'षड्भाषामयस्तोत्राणि' की रचना की थी। इन सबके १. जैनस्तोत्रसंदोह, द्वितीय भाग चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद प्रस्तावना गुजराती, पृ० ५२ । २. Dr. Winternitz, History of Indian Litearture, Vol. II. p. 544. ३. Descriptive Catalogue of Manuscripts of the Jain Bhand - aras at Patan, Lalchandra Bhagvandas Gandhi Edited, Oriental Institute, Baroda, Vol. 1, 1937 A. D. प्रास्ताविकम्, पृ० २५. ४. जैनस्तोत्र संदोह : प्रथम भाग चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, " पृ० २५७-६२ । ५. देखिए वही : पृ० ३७५ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204