Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 164
________________ १४२ जैन-भक्तिकाव्यको पृष्ठभूमि पद्मावतीकी रूपरेखा __ देवी पद्मावतीके चार हाथ होते हैं, जिनमें से सीधी ओरका एक हाथ वरदमुद्रा में उठा रहता है और दूसरे अंकुश होता है । बायीं ओरके एक हाथमें दिव्यफल और दूसरेमें पाश रहता है। अंकुश और पाशमें-से अग्निज्वालाएं निकलती रहती हैं। देवीके तीन नेत्र होते हैं, तीसरा नेत्र क्रोधके समय ही खुलता है और उसमें से विकराल स्फुलिंग निकलने लगते हैं। देवीके सिरपर तीन फणोंवाले नागका मुकुट सुशोभित होता है। अभिधान-चिन्तामणिमें पांच फणोंका उल्लेख है। देवीका वाहन कर्कुट नाग है, जिसके विषकी एक बूंदमें समचे विश्वको समाप्त करनेकी शक्ति है। देवीके दो रूप हैं-रोद्र और सौम्य । पहलेसे अत्याचारियोंका नाश होता है और दूसरेसे संसारका कल्याण । महान् शक्तियोंमें कठोरता और कोमलता, विरूपता और सुन्दरता तथा दण्ड और बरदानका समन्वय होता ही है। सौम्य-मुद्रामें आनेपर देवीके शरीरसे प्रातःके सूर्यको आभा फूटने लगती है, चेहरा प्रसन्न हो जाता है, और हाथ-पैरोंसे कमलको-सी सुगन्धि निकलने लगती है। पद्मावतीके पर्यायवाची नाम | - नयविमलसूरि ( ११वीं शतो ) के 'संखेश्वरपार्श्वनाथस्तवनम' के दसवें श्लोकमें पद्मावतीको सरस्वती, दुर्गा, तारा, शक्ति, अदिति, लक्ष्मी, काली, त्रिपुर-सुन्दरी, भैरवी, अम्बिका और कुण्डलिनी कहा गया है। भैरव पद्मावती १. मल्लिषेणसरि, भैरवपद्मावतीकल्प : सूरत, २।१२। २. "व्याघ्रोरोल्का सहस्त्रज्वलदनलशिखा लोलपाशाङ्कशाक्ये।" पमावती-स्तोत्र : पहला श्लोक, भैरवपद्मावतीकल्प : सूरत, १० ७८ । ३. देखिए, वहीं : २॥१२ व २।२। ४. देखिए, मूडबिद्रीके दिगम्बर जैन मन्दिरमें प्रतिष्टित श्री पद्मावती देवीकी ५. हेमचन्द्राचार्य, अमिधानचिन्तामणि : मावनगर, २४४१ वी. नि० सं०, ६. मावदेवसूरि, पार्श्वनाथचरित्र : ७१७२८ । ७. मल्लिषेणसूरि, भैरवपद्मावतीकल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट ५, श्लोक २-८, पृ० २६, २७ । ८. नयविमलसूरि, संखेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् : शारलटकाउजेके जैन एंशि यण्ट हिम्समें निबद्ध, १०वा श्लोक ।

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