Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 197
________________ Audi-NAGrihastiseastu गराध्य देवियाँ सरस्वतीके पर्यायवाचो सरस्वती शब्दकी व्याख्या करते हए धनञ्जयनाममालाके भाष्यकार अमरकीत्तिने लिखा है, 'सरः प्रसरणमस्त्यस्याः सरस्वतो', अर्थात् जो सबमें प्रसरण कर जाये वह सरस्वती है । सरस्वतीको भारती भी कहते हैं। भारतीका अर्थ है भरतकी पत्नी, और जो 'वित्ति जगद् धारयति' है वह ही भरत है, उसका दूसरा नाम ब्रह्मा भी है। इस भांति साक्षात् ब्रह्माकी पत्नी ही सरस्वती कहलायी। इसी कारण उसको ब्राह्मी भी कहते हैं। सरस्वतीका दूसरा नाम 'गीः' है। पीः का अर्थ है, 'गीर्यते उच्चायते रान्तं गोः', जो गायी जाये, जिसका उम्चारण किया जाये वह मीः है। 'चुरादि'के 'वण'से वाणीका निर्माण हुआ है। 'वण' शब्द करनेके अर्थमें आता है, इसीलिए उसे 'वण शब्दे' कहा गया है। उसकी व्युत्पत्ति 'वाण्यते वाणिः'के रूपमें प्रसिद्ध है। वाक, वचन और बच भी वाणीके ही पर्यायवाची हैं।' अमरकोषमें कोषकारने सरस्वतीको ब्राह्मी, भारती, भाषा, गीः, वाक्, वाणी, व्याहार, उक्ति, लपितम्, भाषितम्, वचनम्, और वचः नामोंसे पुकारा है। सरस्वतीसे सम्बन्धित साहित्य प्राकृत और संस्कृत, उभय भाषाओंके विद्वान् श्री मल्लिषेण सूरिने सरस्वतीकल्पकी भी रचना की थी। उन्होंने प्रशस्तिके प्रारम्भमें ही भगवान् अभिनन्दनकी वन्दना कर अल्पबुद्धियों के लिए सरस्वती-कल्प के निर्माणको प्रतिज्ञा की है। उनकी स्पष्ट उक्ति है कि देवी सरस्वतीके प्रसादसे ही मैं इस भारती-कल्पको बना सकने में समर्थ हो पा रहा हूँ। श्री विजयकीत्तिके 'सरस्वतीकल्प'को हस्तलिखित प्रति श्री पन्नालाल जैन सरस्वती भवन भूलेश्वर, बम्बईमें रखी हुई है, उसका H . . RAMAYA १. देखिए धनायनाममाला : कारिका १०४, भाष्य, पृष्ठ ५२ । २. भमरकीर्ति, भमरकोश : ३१२-१३वीं पंक्ति, पृ० ३७ । ३. जगदीश जिनं देवममिवन्यामिशङ्करम् । वक्ष्ये सरस्वतीकरूपं समासायाल्पमेधसाम् ॥१॥ महिषेण, सरस्वती मन्त्र-कल्प : भैरवषमावती-कल्प : अहमदाबाद, परि शिष्ट ११, पृ०६१। ४. लन्धवाणी प्रसादेन मल्लिरेणेन सूरिणा। रयते भारतीकल्प: स्वल्पजाप्यफलप्रदः ॥ देखिए, वही: तीसरा श्लोक, पृ.६१। .. .

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