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भारण्य देविका मर्दन, क्षेत्रपाल और चामुण्डराजकी भी वन्दना जनभक्तों द्वारा प्रतिदिन की बाती षो।' माडोलके वि० सं० १२२८ के लेखका प्रारम्भ "बों स्वस्ति धिमै भवन्तु वो देवाः ब्रह्मश्रीधरशङ्कराः। सदा विरागवन्तो ये अिनजगति लोके विश्रुताः" से हुआ है, और इससे सिद्ध है कि जैन-क्षेत्रोंमें ब्रह्मा, विष्णु और महेशको भी 'जिन' नामसे स्तुति की जाती थी। अकलंकस्तोत्रमें भी ब्रह्मा, विष्णु और महेशको वन्दना की गयो है, किन्तु अपनी दृष्टिसे । ठीक इसी प्रकार शिव-मन्दिरकी दीवालोंपर भी जैन तीर्थंकर और देवियोंकी मूर्तियां विराजमान हैं। आज भी बंगाल और आसाममें भगवान् पार्श्वनाथको लाखों अजैन व्यक्ति पारस बाबा कहकर पूजते हैं। जैनोंके अतिशय तीर्थक्षेत्रोंके महोत्सवोंमें अजैन जनता उत्साहपूर्वक भाग लेती है। फिर यदि जैन जनताने महिषासुरमर्दिनीको भक्तिपूर्वक पूजा को तो वह भले ही श्रीरत्नप्रभसूरिकी आज्ञाके विरुद्ध हो किन्तु जन-मनको परम्पराके अनुकूल ही थो । अन्तमें श्री रत्नप्रभसूरिने उस देवोको ही जैन-धर्ममें दीक्षित कर लिया। एक बार भूखी देवी श्री सूरिजीके पास आयी, और अपना भक्ष्य मांगा। सूरिजीने मिष्टान्नादि भेंट किये । किन्तु महिपोंके मांससे तृप्त होनेवाली देवीने मिष्टान्नको स्वीकार नहीं किया। सूरिजीके द्वारा प्रबोधित किये जानेपर देवी अहिंसक बन गयो।' कुछ भी हुआ हो; जैन-जनता देवीकी पूजा करती रही। यदि उसका रूप न बदलता, तो भी पूजती रहती। भक्त आराध्यके रूप-विशेषपर नहीं, किन्तु शक्तिपर विमोहित होता है । सच्चियासे सम्बन्धित मन्दिर, शिलालेख और मूर्तियाँ
ओसियाँमें सच्चिया माताका मन्दिर है । ओसियां प्राचीन उपकेश या ऊकेशका बिगड़ा हुआ रूप है। यह स्थान जोधपुरसे ३९ मील दूर है। मन्दिर एक १. यह शिलालेख मारवाड़ राज्यमें जूना नामक स्थानपर संवत् १३५२ का
खुदा हुआ है।
देखिए, एपिग्राफिया इण्डिका : भाग ११, पृ० ५९-६०। .. २. एपिमाफिया इण्डिका : भाग ९, पृ० ६७-६८ । ३. भट्टाकलंक, अकलंकस्तोत्र : बम्बई, २-४ श्लोक, पृ० १-३। ४. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैभव : पृ०१२३ । ५, रॉ. जगदीशचन्द्र जैन, भारतीय तत्वचिन्तन : पृ० ९२-९३ । ६. उपकेशगच्छ पहावली समुच्चय : भाग १, पृ. १८७ । .. इसी नामका एक रेलवे स्टेशन जोधपुर-फलोदी-पोकरन लाइनपर स्थित है।