Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 194
________________ জল-মক্ষিকামী যুমুন্সি ऊंची पहाड़ीपर बना हुआ है। मन्दिरके गर्भगृहको रचना बहुत प्राचीन है । श्री भार०० भण्डारकर इसे आठवीं शताब्दीका बतलाते हैं, किन्तु मन्दिर बारहवीं शताब्दी के मध्यसे अधिक पुराना नहीं है। यह मारवाड़का एक पवित्र स्थान है। दूर-दूर तक उसकी ख्याति है। पालनपुर तकके दाक्षिणात्य, माताकी भक्तिमें हिचे चले आते हैं । जैनोंमें ओसवाल जैन इस स्थानको बहुत मानते हैं। वे अपने बच्चोंका मुण्डन-संस्कार भी यहाँपर ही करवाते हैं। यह मान्यता चली आ रही है कि देवीके दर्शनार्थी उस स्थानको सूर्यास्तके पहले ही छोड़ दें, अन्यथा माता क्रुद्ध हो जायेगी । वहाँ एक रात भी ठहरा नहीं जा सकता। ____ मन्दिरके गर्भ-गृहके पीछे एक शिलालेख लगा हुआ है, जो वि० सं० १२३४ चैत्र सुदी १० गुरुवारको उत्कीर्ण हुआ था। इसके अनुसार श्रद्धालु गयपालने चण्डिका, शीतला, सच्चिका, क्षेमंकरी और क्षेत्रपालको मूत्तियोंकी रचना करवायी थी। आज भी गर्भगह के बाहरके तीन आलोंमें चामुण्डा, महिषासुरमर्दिनी और शीतलाको मूत्तियां विराजमान हैं। इसी मन्दिर में एक दूसरा लेख वि० सं० १२३६ कात्तिक सुदी १, बुधवारका लिखा हुआ प्राप्त हुआ है। इसमें देवीका नाम सञ्चिका या सच्चिका स्पष्ट रूपमें अंकित है। इस शिलालेखके अनुसार उपके 1. The basement moulding of the shrine ( of saciyamata of osian) are undoultedly old but all other work is of a much later date--The temple of saciyamata, though originally perhaps as old as the 8th Century, The time when the Jaina Temple was built, can not be placed Earlier than the middle of the 12th century. Archaeological survey of India, Annual report, 1908, 1909, Dr. R. D. Bhandarkar Edited, part II, p. 110. २. देलिए वही : पृ० १०९ । ३. संवत् १२३४ चैत्र सुदि १० गुरौ घोरवडांशुगोत्रेसाधु बहुदा सुतं साधु जाहण तस्य भार्या सूहवं तयोः सुतेन साधु माल्हा दोहित्रेन साधु गयपालेन सधिको देवि प्रासादकर्मणि चंडिका शीतला श्री सचिकादेवि क्षेमंकरी श्री क्षेत्रपाल प्रतिमामिः सहितं जंघाघरं आत्मश्रेया कारितम् । पूर्णचन्द्र नाहट, जैनशिहालेख-संग्रह : भाग १, लेख-संख्या ८.५, १९८॥

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