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भराध्य देवियाँ
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खुदा हुआ है, सम्भव है ये चारों मूत्तियाँ एक ही morerent कृति हों पनागर में खैरदेय्याने स्थानके पास ही अम्बिका, पद्मावती एवं ज्वालामालिनीकी मूर्तियाँ हैं और उनके मस्तकपर क्रमश: नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभकी प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं | मध्यकाल में देवी ज्वालामालिनीके कुछ चित्र सुन्दर वस्त्रोंपर चित्रित हुए थे। जैन तन्त्र-साहित्य भी वस्त्रोंपर हो अधिक मिलता है । तान्त्रिक पदोंकी परम्पराका विकास न केवल भारतमें हुआ, बल्कि तनिकटवर्त्ती तिब्बत और नेपालमें भी हो रहा था ।
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भक्ति के कुछ उद्धरण
देवीके स्मरण और दर्शनसे संसार वशमें हो जाता है
स्वामेव बालारुणमण्डलाभं स्मृत्वा जगत्वत्करजालदीपम् । विलोकते यः किल तस्य विश्वं विश्वं भवेद् वश्यमवश्यमेव ॥ ५॥ यस्तप्तचामीकरचारुदीपं पिङ्गप्रभं त्वां कलयेत् समन्तात् । सदा मुद्दा तस्य गृहे सहेलं करोति केलिं कमला चलापि ॥ ६ ॥ यः श्यामलं कज्जलमेचकामं त्वां वीक्षते चातुषधूमधूम्रम् । faपक्षपक्षः खलु यस्य वाताहताम्रवद् यात्यचिरेण नाशम् ॥७॥ जाप, होम और पूजा तो दूरको बात है, जो केवल ध्यान-भर करता है, उसे सौभाग्यलक्ष्मी स्वयं वरण करती है-
पुष्पादिजापामृत होमपूजा क्रियाधिकारः सकलोऽस्तु दूरे ।
यः केवलं ध्यायति बीजमेव सौभाग्यलक्ष्मीर्वृणुते स्वयं तम् ॥ १२ ॥ प्राप्नोत्यपुत्रः सुतमर्थहीन. श्रीदायते पत्तिरपीशते हि । दुःखी सुखी वाse भवेन्न किं किं त्वद्रूप चिन्तामणिचिन्तितेन ॥ १३ ॥ ५. सच्चिया माता
परिचय
मध्यकालीन शिलालेखों में जिस सञ्चिका या सच्चिकाका उल्लेख है, वह ही सच्चा कहलाती है । यह, हिन्दू देवी महिषासुरमर्दिनी या चामुण्डाका ही
१ जैन सिद्धान्त मास्कर : भाग २२, किरण १, पृ० १६ ।
२. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैभव : पृ० १३८ । ३. मुनि कान्तिसागर, खोजकी पगडण्डियाँ : पृ० ४० । ४. ज्वालामालिनीमन्त्र स्तोत्रम् : भैरवपद्मावतीकल्प : शिष्ट २५, पृ० १०४ ।
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अहमदाबाद, परि