Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 184
________________ जैन-मक्तिकाम्यकी पृभूमि ...चन्द्रगिरिक शासनबस्ति मन्दिरके गर्भगृहमें, आदिनाथ भगवान्की पांच कुट ऊँको मूर्ति है, जिसके दोनों ओर चौरीवाहक खड़े हुए हैं। सुखनासिमें वक्ष-यक्षिणी, गोमुख और चक्रेश्वरीको प्रतिमाएं हैं। इस मन्दिरका निर्माण सेनापति-गंगराजने 'इन्दिराकुल गृह' के नामसे करवाया था। निर्माणकाल शक सं. १.३९ से पूर्व ही अनुमान किया जाता है, जैसा कि भगवान् आदिनाथके सिंहासनपर खुदे लेख नं० ६५ से विदित है। उत्तर भारतकी चक्रेश्वरी गरुड़वाहिनी, चतुर्भुजी और अष्टभुजी होती हैं । चतुर्भुजी मूर्तियाँ वाहन-विहीन भी मिलती हैं । महाकौशलमें तो चक्रेश्वरीका स्वतन्त्र मन्दिर है। चक्रेश्वरी गरुड़पर विराजमान हैं, और मस्तकपर युगादिदेव हैं । यह मन्दिर बिलहरीके लक्ष्मणसागरके तटपर अवस्थित है। राजघाट [ वारामसी] को खुदाईसे भी चक्रेश्वरीकी प्रतिमाका एक अवशेष निकला है। भारत-कला-भवनमें सुरक्षित है। प्रयाग संग्रहालयको 'नं० ४०८' की मुख्य प्रतिमाके अधोभागमें एक चक्रेश्वरीकी प्रतिमा है। मूतिके चार हाथ है, और उनमें वह शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण किये है। उसके नीचे भक्तोंकी मूर्तियां अंकित हैं । प्रयागके. ही नगरसभा संग्रहालयके बाहर फाटकके सामने अलग-अलग चार अवशेष रखे हैं, जिनमें चौथे अवशेषके दक्षिण निम्न भागमें गोमख यक्ष और बायीं ओर चक्रेश्वरीकी मूर्तियां हैं। मध्यमें वृषभका चिह्न अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि प्रस्तुत अवशेष ऋषभदेवको प्रतिमाका है।' __ रोहड़खेड़ नामका ग्राम विदर्भान्तर्गत धामण गांवसे खामगांवके मार्गमें भाठवें मीलषर अवस्थित है। अपभ्रंश साहित्यके महान् कवि पुष्पदन्त इसी नगरके थे, ऐसी कल्पना श्री प्रेमीजीने की है। यहां एक जैन मन्दिरके ध्वंसा 1. A medieval image of Jain yakshi chakreshuari from Deogarh is given on Pt II of A. S. R., 1917-18, Part I, Mathura Museum Catalogue, Pt III, D. 6, p.31. २. में हीरालाल जैन, जैमशिलालेख संग्रह : प्रथम माग, भूमिका, पृ.१०। ३. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका बैमव : पृ० ४० और १६५। . १. देखिए वही : प्रयाग संग्रहालय, प्रतिमा नं. ४.८ । .. ५. श्रीनाथूराम प्रेमी,जैन-साहित्य और इतिहास : नवीन संस्करण,पृ० २२७-२८॥

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