Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 172
________________ राजा जैन-मक्तिकाम्पको पनि या देवी त्रिपुरा पुरत्रयशीनं सुसिद्धिप्रदा या देवी सहसा समस्तभुवने संगीयते कामदा। तारा या रिपुमर्दिनी भगवती देवी च पद्मावती तां त्वां सर्वगतां स्तुवन्ति विवुधा हे देवि ! तुभ्यं नमः ॥२७॥ ... जो त्रिपुरा देवी तीनों लोकोंको सिद्धि प्रदान करनेवाली है, जो देवी संमस्त लोककी इच्छाओंको पूर्ण करनेवाली है, जो ताराके मानका मर्दन करनेवाली है, सर्वगत है, विवुधोंसे स्तुत है, ऐसी हे देवी पद्मावती ! तुम्हें नमस्कार हो। राजद्वारे श्मशाने च भूतप्रेतोपचारके । बन्धने च महादुःखे भयशत्रुसमागमे ॥६॥ स्मरणात् कवचं शस्यं भयं किन्चिन जायते प्रयोगमुपचारं च पद्मायाः कर्तुमिच्छति ॥१०॥ राजद्वारमें, श्मशानमें, भूत-प्रेतके उपचार में, महादुःखमें, शत्रु-समागमके अवसरपर श्री पद्मावती देवीके कवचका स्मरण करनेसे कोई भय नहीं रह जाता है। लक्ष्मी सौभाग्यकरा जगत्सुखकरा वन्ध्यापि पुत्रापिता . ___ मानारोगविनाशिनी अघहरा (त्रि ) कृपाजने रक्षिका । रवानां धनदायिका सुफलदा वाञ्छाथिचिन्तामणिः त्रैलोक्याधिपतिर्भवार्णवत्राता पद्मावती पातु वः ॥१२॥ देवी पद्मावती लक्ष्मी प्रदान करनेवाली, संसारको सुख देनेवाली, बन्ध्याको भी पुत्र अर्पण करनेवाली और भक्तोंको रक्षा करनेवाली है। वह रंकोंको धन देती है और इच्छार्थियोंके लिए तो चिन्तामणिके समान है। संसार-समुद्रसे रक्षा करनेमें वह ही समर्थ है । ऐसी देवी पद्मावती हमारी रक्षा करे । - श्री श्रीधराचार्यका 'पद्मावती-स्तोत्र' १० पद्योंमें पूर्ण हुआ है। उसके कतिपय पद्य देखिए देवी त्वं ध्यायिता इन्द्र पूजिता शिवशंकरे। . . कृष्णेन संस्तुता देवी महापद्म नमो नमः ॥ १. देखिए वही : पृ० १२६ । २. पद्मावतीकवच : भैरव-पमावती-कल्प : सूरत, पृ० ११५। ३. पनावती-दण्डक : भैरव-पमावती-कल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट ५,१०३६ ।

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