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जैन-मक्तिकाम्यकी भूमि हुई है, दायां पैर एक कमल पुष्पके ऊपर रखा है। बायीं गोदमें एक शिशु है, जिसे देवी दोनों हायोंसे पकड़े हुए है। देवीका केश-पाश भी सुन्दर डंमसे सजा हुमा है। उसका कण्ठहार और गोल कर्ण-कुण्डल भी दर्शनीय है। मूतिके बाद किनारेपर एक सिंह अंकित है, जिसके ऊपर-नीचे एक-एक मकर है। इनका चित्रण केवल प्रसाधन के रूपमें किया गया है। शिलापद्रके दायों मोर भी इसी प्रकारका अलंकरण था, जो टूट गया है। मूत्तिके ऊपर पत्र-रचना बनायी गयी है । प्रस्तुत मूर्ति पूर्व-मध्यकालीन मथुरा-कलाका निदर्शन है।'
कलकत्ता-संग्रहालयमें नं० ४२१८ को मूति, एक वृक्षके नीचे बैठे गोमेष यक्ष और अम्बिकाकी है । अम्बिकाकी गोदमें बालक है, उसके ऊपर ध्यानाकार ऋषभदेव विराजमान है, और सबसे नीचे छह मनुष्योंके अखण्डित आकार हैं, जो भक्त कहे जा सकते हैं। ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने इस मूत्तिको, इन्द्रइन्द्राणी अथवा तीर्थङ्करके माता-पिताकी समझी थी। अब यह स्वीकार किया जा चुका है कि १३वीं शताब्दी तक अम्बिकाकी मूर्तियाँ भगवान् ऋषभदेवके साथ उत्कीर्ण को जाती थीं। नवाब साराभाईके निजी संग्रहालय, मथुरा और लखनऊके पुरातत्त्व-संग्रहालय और सौराष्ट्र देशान्तर्गत डॉकको गुफाओं में, अम्बिकाकी ऐसी अनेक मूत्तियां हैं, जो भगवान् ऋषभदेवसे सम्बन्धित है ।
प्रयाग-संग्रहालयकी संख्या २३५ की प्रतिमा भगवान ऋषभदेवकी है, जिसके बायों ओर अम्बिकाको मूत्ति है। रचना-काल ९ से ११वीं शतीका मध्य है। प्रयागके ही नगर-सभा-संग्रहालयमें उद्यानकूपके निकट छोटेसे छप्पर में एक ऐसी लाल पत्थरकी अम्बिका-मूर्ति विराजमान है, जो शिलाके मध्य भागमें ४१ इंचमें अंकित है । यह मूत्ति आभूषणोंसे युक्त है । आभूषणोंका प्रत्येक अवयव बिलकुल स्पष्ट है । देवीके दोनों चरण सुन्दर वस्त्रसे आच्छादित हैं । केश-विन्यासमें कमलपुष्प बनाये गये हैं । नासिका खण्डित है । प्रतिमाके दायों ओर एक बालक सिंहपर आरूढ़ है, बायीं ओर भी एक बालक अम्बाका हाथ पकड़े खड़ा है । निम्न भागमें अन्जलिबद्ध स्त्री-पुरुष अंकित हैं, जो अम्बाके भक्त हो होने चाहिए। इस प्रतिमाके लिए मनि कान्तिसागरने लिखा है, "इस प्रतिमाने मुझे ऐसा प्रभावित किया कि जीवन पर्यन्त उसका विस्मरण मेरे लिए असम्भव हो गया। बात यह है कि
१. जैन सिद्धान्तभास्कर : भाग १५, किरण २, पृ. १३२ । २. बंगाल, बिहार, उड़ीसाके प्राचीन जैन स्मारक, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी
सम्पादित, पृष्ठ १९ ।